Sunday, January 30, 2011

अपने स्कूल पर भरोसा नहीं


जब अपने ही भरोसा नहीं करते तो बेगानों से क्यों गिला-शिकवा। सरकारी शिक्षा तंत्र की बदहाली पर कटाक्ष करती यह पंक्ति हकीकत बयां करती है। कम से कम जिले के आंकड़े तो यही गवाही दे रहे हैं। जिले में इस समय प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने वाले 2086 शिक्षकों में 2045 शिक्षक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। मतलब 41 ही ऐसे सरकारी शिक्षक हैं, जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। शेष को सरकारी स्कूलों की शिक्षा पर भरोसा नहीं है, तभी तो वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षक पद पर नियुक्ति का क्रेज लोगों के सिर चढ़ कर बोलता है। इसका उदाहरण है कि हाल ही में प्रदेश भर में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के 3725 पदों के लिए 45 हजार के लगभग आवेदन आए थे। यानी की एक शिक्षक पद के पीछे एक दर्जन आवेदन। इससे तो यही लगता है कि सरकारी शिक्षक बनने का क्रेज लोगों में खूब है। इसका दूसरा पहलू सरकारी शिक्षा तंत्र पर सवाल उठाता है। लोगों को नौकरी तो सरकारी चाहिए, लेकिन वे अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए प्राइवेट स्कूलों की तरफ भागते हैं। आज सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 90 फीसदी विद्यार्थी मजदूर, दिहाड़ीदार, दलित व पिछड़े वर्ग से ही आ रहे हैं। ऐसे में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का लोगों से यह कहना कि अपने बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला करवाएं, बेमानी लगता है। अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा दिलवा रहे सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का मानना है कि सरकारी स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर व सुविधाओं का अभाव है। इसके चलते आज इन स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक ही नहीं, बल्कि जिसके पास भी थोड़ा बहुत पैसा है, वे भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते हैं। हालांकि शिक्षा के लिहाज से सरकारी स्कूलों के शिक्षक ज्यादा योग्य होते हैं, लेकिन सरकार द्वारा उनसे पढ़ाने के अलावा इतने गैर शैक्षणिक कार्य लिए जाते हैं कि बच्चों का भविष्य दांव पर लग जाता है, जबकि प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों को पढ़ाने पर ज्यादा जोर दिया जाता है। शिक्षाकर्मी अध्यापक यूनियन की प्रधान राजविंदर कौर पढ़ाती तो सरकारी स्कूल में हैं, लेकिन उनके बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं। उनका कहना है कि सरकारी स्कूलों में सरकार ने शिक्षकों पर डाक का इतना बोझ डाल रखा है कि बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए शिक्षक पढ़ाई को लेकर गंभीर नहीं: जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) सेकेंडरी जोगिंदर दास मकसूदपुरी भी इस बात से सहमत हैं कि शिक्षकों के बच्चे भी सरकारी स्कूलों की बजाय प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे हैं। यही कारण है कि शिक्षक पढ़ाई को लेकर स्कूलों में इतने ज्यादा गंभीर नहीं होते हैं।


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