Friday, January 7, 2011

अब गांवों से निकलेगी डॉक्टरों की फौज

डॉक्टरों की भारी कमी से जूझ रहे गांवों को इस साल नई सौगात मिलेगी। स्वास्थ्य मंत्रालय देश के लगभग 6 सौ जिलों एक मेडिकल स्कूल खोलने की तैयारी में है। यहां गांव के ही प्रतिभाशाली छात्रों को चुन कर डॉक्टरी सिखाई जाएगी और फिर उन्हें गांवों में ही काम करने को कहा जाएगा। इससे ग्रामीणों की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले झोला छाप चिकित्सकों पर अंकुश लग सकेगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से हरी झंडी मिलने के साथ मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने ग्रामीण डॉक्टरों के पाठ्यक्रम बैचलर ऑफ रूरल हेल्थ केयर (बीआरएचसी) का पाठ्यक्रम भी निर्धारित कर लिया है। सभी राज्यों और संबंधित विवि ने इसके लिए सहमति दे दी है। इसके लिए राज्यों ने अपने जिला अस्पतालों की पहचान शुरू कर दी है। एक बार ये मेडिकल स्कूल शुरू हो जाएं, तो जल्दी ही देश के गांवों में डॉक्टरों की कमी खत्म हो सकेगी। इन डॉक्टरों को पांच साल तक सिर्फ प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों और उप केंद्रों में काम करना होगा। इस समय देश के डेढ़ लाख उप केंद्रों पर एक भी डॉक्टर नहीं है। इन मेडिकल स्कूलों के जरिए हर जिले में सालाना 25 से 50 मेडिकल ग्रेजुएट तैयार होंगे। ऐसे में अगर छह सौ जिलों में 25 ग्रामीण डॉक्टर भी प्रशिक्षित होते हैं, तो देश को हर साल 15 हजार ट्रेंड डॉक्टर मिल सकेंगे। यह पाठ्यक्रम जिला अस्पतालों में शुरू किया जाना है। इसके लिए अस्पताल में कम से कम 150 बिस्तर की क्षमता होनी चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रत्येक पिछड़े अस्पताल को 20 करोड़ की मदद देने की सहमति दी है। इस पाठ्यक्रम में दाखिला सिर्फ ग्रामीण इलाके के छात्रों को ही मिलेगा।

ग्रामीण डॉक्टर क्यों
गांवों में डॉक्टरों का घोर अभाव।
एमबीबीएस का गांवों में जाने को तैयार न होना।
गांवों में साधारण बीमारियों की बहुतायत।
डेढ़ लाख स्वास्थ्य उप केंद्रों पर एक भी डॉक्टर नहीं।
कौन बनेगा ग्रामीण डॉक्टर
सिर्फ ग्रामीण इलाके के छात्र, जिन्होंने 12वीं में भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान के साथ ही अंग्रेजी की पढ़ाई की होगी।

इन्हें शुरुआती पांच साल तक सिर्फ गांवों के प्राथमिक चिकित्सा केंद्र (पीएचसी) या उप केंद्र (एससी) में ही काम करना होगा। इसका फायदा सीधे गांव वालों को होगा।

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