Saturday, January 1, 2011

कंपनियां भी देंगी उच्च तकनीकीशिक्षा

 अब कंपनियां भी इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और आर्किटेक्चर जैसे उच्च तकनीकी शिक्षण संस्थानों को चलाएंगी। सरकार ने कारपोरेट जगत के लिए इसका रास्ता साफ कर दिया है। शहरी क्षेत्रों में तकनीकी शिक्षण संस्थानों को खोलने के लिए जमीन के मानक बदल दिए गए हैं। इसके साथ ही अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीई) ने एक बड़ा फैसला किया है, जिससे इंजीनियरिंग में लगभग दो लाख और प्रबंधन (मैनेजमेंट) में लगभग 80 हजार सीटें बढ़ सकती हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने गुरुवार को यहां पत्रकारों से कहा कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधारों और विस्तार के लिए यह एक अहम और जरूरी कदम है। कंपनी कानून 1965 की धारा-25 के तहत मुनाफा न कमाने वाली कंपनी के रूप में रजिस्टर्ड कोई भी कंपनी अब तकनीकी शिक्षण संस्थान चलाने के लिए सक्षम होगी। जरूरतों व भविष्य की चुनौतियों के मद्देनजर ही शहरी क्षेत्रों में तकनीकी शिक्षण संस्थानों के लिए अब 3.5 एकड़ जमीन की बाध्यता नहीं रहेगी। उसे बदल कर 2.5 एकड़ कर दिया गया है। इतना ही नहीं, अब कोई भी तकनीकी शिक्षण संस्थान पर्याप्त संसाधनों के साथ बहुमंजिली इमारत बनाकर एक ही परिसर में दूसरा तकनीकी शिक्षण संस्थान चला सकेगा। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए दस एकड़ जमीन की बाध्यता अब भी रहेगी। इन दोनों के अलावा कोई तीसरी श्रेणी नहीं होगी। अभी ट्रस्ट बनाकर तकनीकी शिक्षण संस्थानों को चलाने का प्रावधान है। कंपनी बनाकर कारपोरेट जगत के लिए यह रास्ता खोलने के बाद भी वह विकल्प बरकरार रहेगा। सिब्बल का कहना है कि इससे उच्च शिक्षा में पारदर्शिता बढ़ेगी और प्रशासन ज्यादा सुदृढ़ होगा। ट्रस्ट व कंपनियों के प्रावधान में फर्क के बारे में सूत्रों का कहना है, ट्रस्ट की आडिटिंग जरूरी नहीं है, जबकि कंपनी के लिए अकाउंट का आडिट जरूरी है। एआइसीटीई ने हर पाठ्यक्रम के लिए 40 सीटों को बढ़ाकर 60 करने का फैसला किया है। इस फैसले से इंजीनियरिंग में 2 लाख, मैनेजमेंट में 80 हजार व आर्किटेक्चर में लगभग 20 हजार सीटें बढ़ने का अनुमान है। मापदंडों में बदलाव की इस पहल में सरकार ने सार्वजनिक व निजी भागीदारी का भी रास्ता खोल दिया है। निर्माण संचालन व स्थानांतरण का भी प्रावधान है। उसके तहत सरकार जमीन उपलब्ध कराएगी और निजी कंपनी उस पर तकनीकी शिक्षण संस्थान बनाएगी। लागत व अन्य खर्चो की अदायगी के बाद निजी कंपनी पूरा संसाधन सरकार को सौंप देगी। यह योजना उन 241 जिलों में अमल में आएगी, जहां अभी एआइसीटीई की मंजूरी वाले तकनीकी संस्थान नहीं हैं। अब सभी तकनीकी संस्थानों को 5 प्रतिशत सीटों पर आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को दाखिला देना जरूरी होगा, जिनसे कोई फीस नहीं ली जाएगी। इसके अलावा प्रबंधन में अब कोई भी पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा पाठ्यक्रम दो साल से कम का नहीं होगा। यदि वह 12 महीने से अधिक व दो साल से कम हुआ तो उसमें डिग्री के बजाय सर्टिफिकेट दिया जाएगा। साथ ही प्रबंधन के किसी भी पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए भी राज्यस्तरीय ठीक वैसी ही प्रवेश परीक्षा जरूरी होगी, जैसी अभी इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए होती है।

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