Thursday, December 30, 2010

यूपी में प्रत्येक विद्यार्थी पर खर्च होते है १ हजार

परिषदीय विद्यालय अन्य मामलों में कान्वेंट स्कूलों से भले पीछे हों लेकिन प्रति विद्यार्थी आने वाले खर्च के मामले में वह बराबरी पर हैं। जी हां, इन विद्यालयों में अध्ययनरत प्रत्येक विद्यार्थी पर हर माह होने वाले खर्च के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार हर माह लगभग एक हजार रुपये प्रत्येक बच्चे पर खर्च करती है। अब एक नजर डालें जिले के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों को विभिन्न मदों के अंतर्गत मिलने वाली धनराशियों पर। 979 प्राथमिक विद्यालय व 461 उच्च प्राथमिक विद्यालयों वाले इस जनपद में छात्रों की कुल संख्या दो लाख 45 हजार 329 है। इन बच्चों को शिक्षा देने के लिए 1631 शिक्षा मित्रों के अलावा 3543 शिक्षकों की नियुक्ति की गई है। शिक्षकों के औसत वेतन को देखा जाय तो एक माह में 7 करोड़ 8 लाख 60 हजार रुपये आता है। इस तरह विद्यालयों से संचालित मिड-डे मील योजना का खर्च जोड़ने पर प्रति माह 3 करोड़ 2 लाख 69 हजार 646 रुपये खर्च हो रहे हैं। प्रति माह शिक्षामित्रों का मानदेय 57 लाख 8 हजार 500 रुपये है। 8 प्राथमिक व उच्च प्राथमिक प्राथमिक विद्यालयों में 8 करोड़ 70 लाख 31 हजार 20 रुपये छात्रवृत्ति के रूप में हर वर्ष वितरित की जाती है। इस तरह छात्राओं को मिलने वाली 105 रुपये की ड्रेस व 90 रुपये के बैग पर भी लगभग 2 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। इस तरह जिले के 2 लाख 45 हजार 329 बच्चों को पढ़ाने में प्रतिमाह लगभग 21 करोड़ 38 लाख 69 हजार 166 रुपये खर्च हो रहे हैं। यानी प्रति छात्र पर 871 रुपये का खर्च। वैसे इसमें कई योजनाओं के मद का विवरण नहीं जोड़ा गया है। मसलन, कई अतिरिक्त भवनों का निर्माण व सर्व शिक्षा अभियान के तहत विभिन्न मद व तमाम सुविधाओं के मद प्रमुख हैं।

प्रारंभिक शिक्षकों के लिए होगी अब पात्रता परीक्षा

शिक्षा का अधिकार कानून में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रावधान कर चुकी सरकार योग्य शिक्षकों के मामले में कोई समझौता नहीं करेगी। लिहाजा कक्षा एक से आठ तक के स्कूल में शिक्षक बनने वालों के लिए पात्रता परीक्षा अनिवार्य होगी। इतना ही नहीं, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने शिक्षकों के लिए योग्यता के मानक भी तय कर दिए हैं। सूत्रों के मुताबिक छह से चौदह साल तक के बच्चों को अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा के लिए देशभर में पांच लाख से अधिक और शिक्षकों की जरूरत भले ही हो, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता पर समझौता नहीं हो सकता। इसी साल पहली अप्रैल से अमल में आए शिक्षा का अधिकार कानून में भी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रावधान किया गया है। इसके मद्देनजर शिक्षकों के लिए उनकी योग्यता और शिक्षक बनने का एक मानक होना जरूरी था। उसी क्रम में एनसीटीई ने कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक बनने के दिशानिर्देश व मानक तय कर दिए हैं। उसके तहत राज्यों में प्रारंभिक शिक्षक बनने के लिए आवेदकों को शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करना जरूरी होगा। यह पूछे जाने पर कि क्या सभी राज्यों ने इसे अपनी रजामंदी दे दी है, सूत्रों ने कहा,एनसीटीई ने सभी राज्यों से मशविरा किया था, उसमें किसी ने इस पर एतराज नहीं जताया। बल्कि कुछ राज्यों ने इस पर अमल भी शुरू कर दिया है। कक्षा एक से पांच तक के शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यता उच्चतर माध्यमिक या उसके समकक्ष परीक्षा में 50 प्रतिशत अंक व प्रारंभिक शिक्षा में दो वर्षीय डिप्लोमा या फिर उच्चतर शिक्षा में 45 प्रतिशत अंक और एनसीटीई के विनियम 2002 के तहत प्रारंभिक शिक्षा शास्त्र में दो वर्षीय डिप्लोमा जरूरी होगा। इतना ही नहीं, उच्चतर माध्यमिक में 50 प्रतिशत अंक व चार वर्षीय प्रारंभिक शिक्षा शास्त्र स्नातक और इंटर में 50 प्रतिशत व शिक्षा शास्त्र में दो वर्षीय विशेष शिक्षा डिप्लोमाधारी भी अध्यापक पात्रता परीक्षा में शामिल होने के पात्र होंगे। इसी तरह कक्षा छह से आठ तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए बीए या बीएससी और प्रारंभिक शिक्षा शास्त्र (जिस भी नाम से जाना जाता हो) दो वर्षीय डिप्लोमाधारी शिक्षक पात्रता परीक्षा में शामिल हो सकेंगे। जबकि 50 प्रतिशत अंकों के साथ बीए या बीएससी व शिक्षा शास्त्र एक वर्षीय स्नातक (बीएड) या 45 प्रतिशत अंकों के साथ बीए या बीएससी और एनसीटीई के नियमों के तहत एक वर्षीय बीएड वाले भी टीईटी में बैठ सकते हैं। इसके अलावा 50 प्रतिशत अंकों के साथ इंटर व चार वर्षीय बीएलएड करने वाले या फिर इंटर में 50 प्रतिशत अंकों के साथ चार वर्षीय बीए या बीएससी एड या बीएएड या बीएससी एड वाले भी टीईटी में शामिल हो सकते हैं। इतना ही नहीं, जिनके पास न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों के साथ बीए या बीएससी और बीएड योग्यता है, वे एक जनवरी 2012 तक कक्षा एक से पांच तक के शिक्षक नियुक्ति के पात्र होंगे। बशर्ते उन्होंने एनसीटीई की ओर से मान्यता प्राप्त छह माह का विशेष प्रशिक्षण लिया हो। जिनके पास डीएड या बीएड की योग्यता है, नियुक्ति के बाद उन्हें एनसीटीई मान्यता प्राप्त शिक्षा शास्त्र में छह माह का विशेष प्रशिक्षण जरूरी होगा। राज्यों में ये शर्तें इसकी अधिसूचना जारी होने के बाद से प्रभावी होंगी।

Wednesday, December 29, 2010

अब लाइव वर्चुअल क्लास से पढ़ाई

सीए की पढ़ाई कर रहे हैं और सीनियर फैकल्टी से लेक्चर लेने में असमर्थ हैं। तो अब छात्रों को ऐसी परेशानी से दो चार नहीं होना पड़ेगा। अब वह लाइव वर्चुअल क्लास के जरिए अपने इलाके से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की जानकारी सीनियर फैकल्टी से प्राप्त कर सकेंगे। दरअसल द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट संस्थान ने सीए करने वाले छात्रों को सुविधा प्रदान करते हुए लाइव वर्चुअल क्लासेज की सेवा की शुरुआत की है।
संस्थान के अध्यक्ष अमरजीत चोपड़ा ने इस सेवा की शुरुआत दिल्ली स्टूडियो से सीपीटी, आईपीसीसी और फाइनल कोर्स करने वाले छात्रों के लिए कर दी है। भविष्य में इसे सीए के बाकी कोर्सेज के लिए भी शुरू करने की योजना है। संस्थान छात्रों को भविष्य में पेशेवर आकार देने और उनमें कौशल विकसित करने के लिए बेहतर शिक्षा और विकास के अवसर प्रदान करता रहता है। इसी कड़ी में प्रयास करते हुए इस नई सेवा को शुरू किया गया है। इस सेवा के माध्यम से छात्र सीधे राष्ट्रीय स्तर के सीनियर फैकल्टी से एक आदर्श क्लास के वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर पाएंगे। जनवरी के दूसरे सप्ताह से इस सेवा का लाभ 22 शहरों के 25 सेंटरों पर छात्रों को प्राप्त होगा। जिसमें दिल्ली, गुड़गांव, लुधियाना, चंडीगढ़, कानपुर, नोएडा, लखनऊ, कोलकाता, कटक समेत अन्य सेंटर भी शामिल हैं। इस सेवा से छात्रों को शिक्षण का थ्योरीटिकल और केस स्टडी मिश्रण की शिक्षा प्राप्त होगी। साथ ही वह देश भर के संकाय सदस्यों से शिक्षण प्राप्त कर सकेंगे।

एआईसीटीई के पीजीडीएम संस्थानों के लिए नए मानक

फीस तय नहीं कराई तो रद होगी मान्यता
ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्नीकल एजुकेशन (एआईसीटीई) ने पीजीडीएम संस्थानों की मान्यता के लिए मानक तय कर दिए हैं। इन मानकों में पीजीडीएम संस्थानों की मनमानी फीस पर लगाई गई लगाम सबसे महत्वपूर्ण है। इसके मुताबिक किसी भी नए या मौजूदा संस्थान को 2011-12 का नया शैक्षणिक सत्र शुरू करने से पहले राज्य की शुल्क निर्धारण कमेटी से अपने खर्चों के आधार पर फीस तय करानी होगी। साथ ही कई अन्य मानकों को पूरा करने के बाद ही एआईसीटीई से मान्यता मिलेगी।
दरअसल, पीजीडीएम संस्थानों को कोर्स चलाने के लिए एआईसीटीई से मान्यता लेनी होती है। सत्र के दाखिलों के आधार पर छात्रों का पूरा ब्योरा भेजने के बाद ही एआईसीटीई छात्रों का पंजीकरण करता है। मानकों को सख्त करते हुए एआईसीटीई के जारी सर्कुलर में कहा गया है कि पीजीडीएम संस्थान 31 मार्च से पहले नए सत्र के दाखिले शुरू नहीं करेंगे। सत्र 1 जून से शुरू होकर 31 मई तक खत्म होगा। कोई भी कोर्स 24 महीने की समयावधि से कम का नहीं होगा। दाखिले कैट, मैट या अन्य प्रवेश परीक्षाओं के आधार पर होंगे। मॉडल सिलेबस एआईसीटीई द्वारा तैयार किया जाएगा। मानक पूरा करते हुए नए सत्र की मान्यता की प्रक्रिया 30 दिसंबर से 28 फरवरी 2011 तक पूरी करनी है। इसके बाद 1 मार्च से 31 मई तक मान्यता देने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के महानिदेशक डॉ. जे.डी. सिंह ने बताया कि एआईसीटीई द्वारा जारी निर्देश प्राप्त हो गए हैं। सभी मानकों को पूरा किया जाएगा।

ये हैं निर्देश

राज्य फीस नियामन समिति से तय कराना होगा शुल्क
24 महीने से कम अवधि को कोई कोर्स नहीं चलेगा
मॉडल सिलेबस एआईसीटीई ही तैयार करेगी
31 मार्च से पहले दाखिले शुरू नहीं करेंगे संस्थान
1 जून से 31 मई तक चलेगा सालाना सेशन
किसी भी प्रवेश परीक्षा के आधार पर ही दाखिले होंगे
फैकल्टी की जानकारी समेत सारा ब्योरा ऑनलाइन करें 

Tuesday, December 28, 2010

रिमोट ट्रिगर्ड लैब बनाएगी घर बैठे इंजीनियर

अब वह दिन दूर नहीं जब दूरदराज गांव में बैठा छात्र कंप्यूटर स्क्त्रीन पर इंजीनियरिंग की पूरी पढ़ाई पढ़ सकेगा। अभियांत्रिकी तकनीकी शिक्षा में थ्योरी के साथ लेबोरेट्री के सभी डिमोस्ट्रेशन प्वाइंट टू प्वांइट स्क्रीन पर ही हो सकेंगे। यह सब कुछ संभव होगा रिमोट ट्रिगर्ड लैब से। दयालबाग शिक्षण संस्थान ने 11 अन्य संस्थानों के सहयोग से इस लैब को तैयार किया है। देश के इंजीनियरिंग संस्थानों में छात्र-छात्राओं के सामने सबसे बड़ी समस्या बेहतर लेबोरेट्री का न होना है, वहीं इंटरनेट के युग में घर पर पढ़ाई करने वाले छात्रों को प्रैक्टिकल के लिए संस्थानों का सहारा लेना पड़ता है। अभियांत्रिकी तकनीकी में बेहतर आयाम बनाने के उद्देश्य से मंत्रालय स्तर पर इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई थी। लैब तैयार करने का जिम्मा मंत्रालय द्वारा दयालबाग शिक्षण संस्थान के अलावा 11 अन्य तकनीकी संस्थानों को सौंपा गया। संस्थान के फिजिक्स एंड कंप्यूटर साइंस विभाग ने प्रोजेक्ट के तहत यह लैब तैयार की है। लैब तैयार करने वाले विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर (डीएलएसआई डिजाइन) डॉ. सीएम मारकन बताते हैं कि लैब सिस्टम की कनेक्टिविटी सैटेलाइट के जरिये इंटरनेट से जोड़ी जाएगी। इसमें लैब की वेबसाइट पर विशेषज्ञों की स्पीच, ई बुक्स, प्रैक्टिकल के लिए हर तरह के सर्किट का इस्तेमाल करने को प्वाइंट टू प्वाइंट सुविधा उपलब्ध होगी। वेबसाइट के माध्यम से छात्र कंप्यूटर पर लैब और थ्योरी की पूरी पढ़ाई बारीकी से कर सकेंगे। इसके माध्यम से वाइवा भी पंजीकृत होने वाले संस्थान में दिया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि लैब तैयार हो चुकी है और संस्थान ने ट्रायल के तौर पर एनसीआर के 18 इंजीनयिरिंग संस्थानों को पंजीकृत किया है, जहां के छात्रों को सुबह 11 से चार बजे तक की कनेक्टिविटी दी जा रही है। देश भर में ट्रायल सफल रहा है। शीघ्र ही प्रोजेक्ट की फाइनल रिपोर्ट मंत्रालय को भेज दी जाएगी। ऐसे कर सकेंगे इस्तेमाल : भारत सरकार छात्रों को डेढ़ हजार रुपये में कंप्यूटर सुविधा देने की तैयारी कर रही है। इस कंप्यूटर पर इंटरनेट की कनेक्विटी मिलने के बाद इच्छुक छात्र संबंधित इंजीनियरिंग संस्थान से पंजीकरण कराएंगे और फिर इसके बाद उन्हें पासवर्ड एलॉट होगा। उस पासवर्ड के जरिये बेवसाइट पर वह लैब इस्तेमाल कर सकेंगे। एक लैब से पढ़ेंगे हजारों छात्र : अमूमन एक लैब में 20-25 छात्र-छात्राएं ही एक बार में लाभान्वित हो पाते हैं, मगर इस तरह की आधुनिक लैब से कई हजार छात्र-छात्राएं जुड़ सकेंगे। लैब डिजायनर डॉ. सीएम मारकन कहते हैं कि इससे अंडर ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और शोधार्थी लाभान्वित हो सकेंगे। साथ ही लैब स्थापित करने में बजट का भी कम खर्चा होगा। लैब तैयार करने वाले संस्थान : दयालबाग शिक्षण संस्थान के अलावा आइआइटी दिल्ली, मुंबई, आइआइटी कानपुर, आइआइटी खरगपुर, आइआइटी मद्रास, आइआइटी रुड़की, आइआइटी गुवाहाटी, आइआइटी हैदराबाद, अमिृता यूनिवर्सिटी एवं दो अन्य।