Sunday, December 19, 2010

परिवर्तन के लिए एक खामोश अभियान

संदीप
जीवन विद्या अभियान का प्रस्ताव है कि हर व्यक्ति में सही को पहचानने और उसके अनुसार जीने की मूल क्षमता मौजूद है। शिक्षा और लोकशिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर करना सिर्फ इतना है कि हर आदमी को सही की पहचान करा दी जाए। एक बार सही को पहचानकर हर आदमी अपने दम पर खड़ा होगा और व्यवस्था, जो कि प्रकृति में है ही, के साथ भागीदार होकर, अपनी भूमिका निभाते हुए, जीना शुरू कर सकेगा।
न कोई नेता, न कार्यकर्ता, न कोई नारा और शोर, न दिखावे का कोई तामझाम, मगर आवाहन ऐसा कि गांव का अनपढ़ किसान हो या आई.आई.टी. का वैज्ञानिक, हर कोई कारवां में शाामिल हो जाता है। मकसद है समस्याओं और अव्यवस्थाओं से जूझ रहे मानव, परिवार, समाज और प्रकृति को राहत दिलाने का। ये मौका था जीवन विद्या अभियान के 15 वें राष्ट्रीय सम्मेलन का। बांदा शहर से पांच कि.मी. दूर आंवले की बगिया में 12 नवंबर से 13 नवंबर तक उन तमाम गहन मुद्दों पर चर्चा हुई जिनसे देश और दुनिया के लोग इस समय जूझ रहे हैं।
मध्यस्थ दर्शन की रोशनी में पिछले पन्द्रह साल से चल रहे जीवन विद्या अभियान का लक्ष्य आतंकवाद का खात्मा भी है और भ्रष्टाचार पर आवाज उठाना भी। बात मिलावट, नशाखोरी की हो, ग्लोबल वार्मिंग, पारिवारिक असंतुलन की, आधुनिकता की या रूढ़िवादिता की, जीवन विद्या अभियान का दावा है कि उसके प्रस्ताव में धरती की हर समस्या का समाधान है, दुनिया के 700 करोड़ लोगों के सवालों का जवाब है। सम्मेलन में देश भर से आए लोगों का अनुभव और निष्कर्ष को सुनकर विश्वास भी होता है कि बिना किसी का विरोध किए, बिना संघर्ष का रास्ता अपनाए, भी दुनिया को सजाया जा सकता है। वस्तुतः तो यह भी समझ में आता है कि दुनिया को सजाने का काम संघर्ष और विरोध की बुनियाद पर नहीं बल्कि सही शिक्षानीति को अपनाने से होगा। आज व्यवस्था-परिवर्तन और समस्या-समाधान के नाम पर कहीं सरकारें बदली जा रही हैं तो कहीं संविधान। लेकिन एक बुनियादी चीज जो नहीं बदली जा रही है वह हैं देश में फैले हमारे शिक्षा संस्थान तथा शिक्षा नीति। हर पढ़ा लिखा आदमी अपनी जिंदगी के बीस साल शिक्षा-व्यवस्था को ग्रहण कर लेने के बाद भी यही सीखकर जीना शुरू करता है कि जीवन का लक्ष्य सिर्फ सामान और सुविधा इकट्ठा करना है, इसके लिए फिर भले ही किसी का शोषण क्यों न करना पड़े। उधर शिक्षा-मूल्य के नाम पर सच और ईमान जैसे शब्द केवल रटा दिए जा रहे हैं।
जीवन विद्या अभियान का प्रस्ताव है कि हर व्यक्ति में सही को पहचानने और उसके अनुसार जीने की मूल क्षमता मौजूद है। शिक्षा और लोकशिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर करना सिर्फ इतना है कि हर आदमी को सही की पहचान करा दी जाए। एक बार सही को पहचानकर हर आदमी अपने दम पर खड़ा होगा और व्यवस्था, जो कि प्रकृति में है ही, के साथ भागीदार होकर, अपनी भूमिका निभाते हुए, जीना शुरू कर सकेगा। आई.आई.टी., कानफर, आई.आई.आई.टी., हैदराबाद, आई.आई.टी., दिल्ली, सोमया कालेज मुंबई सहित कई विश्व विद्यालयों के प्राफेसर इस कारवां में शामिल हैं। सर्वोदयी आंदोलन के नेता, किसान यूनियन के संस्थापक, योगाचार्य, चिकित्सक, नौकरीपेशा, व्यापारी, अनपढ़ किसान, विभिन्न धाराओं के लोगों और समाजिक कार्यकर्ताओं सहित देश के एक दर्जन से अधिक राज्यों के लगभग 300 प्रतिनिधि इस खामोश आंदोलन के सूत्रधार बने हुए हैं।
सम्मेलन की शुरूआत में ही बांदा के किसान रणवीर सिंह चौहान ने कहा कि आज एक तरफ सिओल में धरती के संसाधनों को बांटने का काम चल रहा है वहीं दूसरी ओर देश की संसद में पक्ष-विपक्ष एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का काम कर रहे हैं। ऐसे में जीवन विद्या का यह सम्मेलन आज एक महत्वपूर्ण विकल्प पर विचार करेगा जिसमें मानव सहज रूप से मानव और प्रकृति के रूप में तालमेल पूर्वक रह सके। आई.आई.टी. से जुड़े और मानवीय शिक्षा संस्कार समिति, कानफर के श्री गणेश बागड़िया ने कहा कि विगत में कई लोगांे ने आंदोलन, क्रांतियों या हिंसक तरीकों से मौजूदा व्यवस्था को बदलने के लिए प्रयास किया है बहुत बार ये बदलाव हुआ भी लेकिन उसका स्थान लेने वाली व्यवस्था पहले से भी ज्यादा पीड़ादायक साबित हुई है। इसी पीड़ादायक व्यवस्था के विकल्प के रूप में जीवन विद्या जिंदगी के सभी आयामों अर्थात् स्वयं, शरीर, परिवार, समाज और प्रकृति के साथ व्यवस्था पूर्वक जीने का तरीका बताती है जिसे हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी पर जांच सकता है।
अमरकंटक में निवासरत जीवन विद्या के प्रणेता 92 वर्षीय श्री ए. नागराज ने अपने उद्बोधन में कहा- शिष्टतापूर्वक जीवन जीने की विधि समझाना ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है यह कार्य कोई कम्प्यूटर या किताबों केे आधार पर नही हो सकता है। बल्कि समझदार शिक्षकों के आचरण से ही संभव होगा।
व्यवस्था के विकल्प की बात करते हुए किसान आंदोलन एवं आई.आई.टी. से जुड़े डा. रण सिंह आर्य ने कहा कि वर्तमान में मनुष्य निर्मित तंत्र को हम व्यवस्था कह रहें है, जो कि न सिर्फ सड़ चुका है, बल्कि इसमें मनुष्य की पहचान भी मनुष्य के रूप में किए जाने की संभावना भी खत्म हो गई है। आजकल सफल माने जाने वाले लोग भी मानसिक रूप में अभाव, भय, तनाव, खालीपन एवं अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। परिवार में टूटन, शिकायत एवं समाज में अविश्वास के रूप में तमाम समस्याएं बढ़ रही हैं। ऐसे मे अस्तित्व और प्रकृति में व्यवस्था को समझे बिना वर्तमान संकटों का समाधान संभव नही है। छत्तीसगढ़ में मानवीय शिक्षा की स्थापना की जानकारी श्री सोमदेव त्यागी एवं शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने दी। उन्होंने बताया कि बहुत सारे मित्र अलग-अलग दिशाओं में, देश के अलग-अलग हिस्सों में, सबकी अपनी प्रवृति के अनुसार लगे हैं। लेकिन ये लगभग सबकी स्वीकृति में है कि जितना हमने नियोजन किया है परिणाम उससे कहीं ज्यादा ही आया है। छत्तीसगढ़ में इंजीनियरिंग शिक्षा में बहुत काम हुआ। पिछले 3 सालों में छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग के साथ मिलकर बड़ा काम हुआ। लगभग बीस हजार शिक्षक शिविरों से गुजर चुके हैं और जितना काम छत्तीसगढ़ में पिछले तीन साल में हुआ उतना पिछले चार महीने में महाराष्ट्र में हो चुका है। ऐसा लगता है कि आगे की यात्रा और सुखद होने वाली है।
जीवन विद्या आधारित चेतना विकास मूल्य शिक्षा के पाठ्यक्रम पर भी चर्चा की गई। इसके आधार पर कक्षा एक से पांच तक की किताबें तैयार कर ली गई हैं जिन्हें छत्तीसगढ़ के सभी प्राइमरी स्कूलों में लागू कर दिया गया है। अगले चरण में कक्षा 6 से 10 तक की किताबें तैयार की जानी हैं। जिसकी जिम्मेदारी माइनिंग इंजीनियर रहे और 20 वर्षां से जुड़े साधन भट्टाचार्य एवं उनकी टीम ने संभाली है।

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