Tuesday, November 6, 2012

बीस साल बाद फिर बनेगी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति




ठ्ठराजकेश्वर सिंह, नई दिल्ली बीस साल बाद देश की शिक्षा नीति फिर बदलेगी। नॉलेज इकोनॉमी में भारत को विश्व हब बनाने का सपना देख रही सरकार अब नई चुनौतियों के मद्देनजर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाएगी। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से हो रहे बदलावों के मद्देनजर नई शिक्षा नीति दुनिया के एक्सीलेंस (उत्कृष्टता) के मापदंडों के लिहाज से होगी। देश की नई शिक्षा नीति कैसी हो? उसकी दशा और दिशा तय करने के लिए सरकार ने शिक्षा आयोग का गठन कर दिया है। बीते दिनों हुए फेरबदल में मानव संसाधन विकास मंत्रालय का प्रभार कपिल सिब्बल से भले ही छिन गया हो, लेकिन फेरबदल से पहले इस आयोग के गठन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मुहर लगवाने में वह कामयाब रहे। नेशनल रिसर्च प्रोफेसर आंद्रे ब्रेते 15 सदस्यीय इस आयोग के चेयरमैन होंगे। आयोग दो साल के भीतर अपनी रिपोर्ट सरकार को देगा। इससे पहले 1966, 1986 और 1992 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बदलाव किया गया था। सूत्रों के मुताबिक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति कई बदलावों को अंजाम देगी। मौजूदा जरूरतों और वैश्विक चुनौतियों के लिहाज से शिक्षा नीति बनाने के क्रम में समावेशी के साथ ही गुणवत्ता में तेजी से सुधार के उपायों पर फोकस होगा। आयोग अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े, अल्पसंख्यकों और लड़कियों की शिक्षा की रफ्तार बढ़ाने की राह भी सुझाएगा। अनिवार्य शिक्षा के अधिकार कानून की चुनौतियों का आकलन करने के साथ ही बच्चों के सीखने-समझने की स्थिति में सुधार पर खास जोर दिया जाएगा। इतना ही नहीं, विकेंद्रीकरण के मद्देजर संवैधानिक प्रावधानों के तहत प्राइमरी, माध्यमिक, व्यावसायिक शिक्षा और साक्षरता केंद्रों को चलाने में शहरी निकायों व पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका फिर से तय की जाएगी। नैतिक व संवैधानिक मूल्य शिक्षा का अभिन्न हिस्सा कैसे बने? आयोग उसका उपाय तो सुझाएगा ही, साथ ही उच्च शिक्षा में जवाबदेही के साथ स्वायत्तता को बढ़ावा देने के नीतिगत व वैधानिक रास्ते भी बताएगा। विश्वविद्यालयों से कालेजों की संबद्धता के पुराने ढांचे में बदलाव भी होगा।नई नीति में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कामगारों को रोजगार पर खास फोकस के मद्देनजर स्कूली शिक्षा को उच्च शिक्षा से जोड़ने, प्रोफेशनल एजुकेशन, वोकेशनल शिक्षा, स्किल डेवलपमेंट और विश्वविद्यालयी शिक्षा में तारतम्य स्थापित करने पर जोर होगा। सीखने-समझने के लचीले तौर-तरीके और छात्रों को उनकी पसंद की पढ़ाई के ज्यादा अवसर मुहैया कराए जाएंगे। यह है नया शिक्षा आयोग प्रो आंद्रे ब्रेते नए शिक्षा आयोग के अध्यक्ष हैं। डॉ के श्रीनाथ रेड्डी, प्रो मुस्तांसिर वर्मा, प्रो रोनाल्ड पीटर डिसूजा, प्रो नयनजोत लाहिड़ी, प्रो एमपी सिंह, प्रो गोपाल गुरु, प्रो चारुशिता चक्रवर्ती, प्रो श्याम मेनन, प्रो जेबी तिलक, देवी कार, ज्योति बोस, डॉ विमला रामचंद्रन, मनीष सब्बरवाल और कैलीफोर्निया, यूनिवर्सिटी आफ ब्रेकले के प्रो प्रणब बर्धन आयोग के सदस्य होंगे।
Dainik Jagran National Edition -6-11-2012 शिक्षा Page-3

देश में 50 नए उच्चस्तरीय शोध केंद्र स्थापित होंगे



नई दिल्ली (एसएनबी)। केंद्रीय मानव संसाधन राज्यमंत्री शशि थरूर ने सोमवार को कहा कि हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति समय के अनुकूल नहीं है और पहले भी नहीं थी। उन्होंने कहा कि भारतीय कंपनियों की जरूरत पूरी करने के लिए देश की मौजूदा शिक्षा पण्राली से ‘सुशिक्षित’ स्नातक नहीं मिल पा रहे हैं। जिससे कंपनियों को प्रशिक्षण के बहाने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में घुसने का मौका मिल रहा है। नए राज्यमंत्री ने कहा कि देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में कारगर शोध के लिए 50 उच्चस्तरीय केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव है। यहां आयोजित दो दिवसीय उच्च शिक्षा सम्मेलन में थरूर ने कहा कि पश्चिम एशिया और चीन विदेशी विश्वविद्यालयों को आकर्षित करने के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं। ताकि वह उनके वहां जाकर अपने परिसर स्थापित करें, जब कि भारत ने हाल के वर्षो में विदेशों के कई अकादमिक निवेदन खारिज कर दिए। उन्होंने कहा कि अगर भारत में ही उच्च शिक्षा संस्थान स्थापित हो तो भारतीय छात्रों के विदेशों में जाने की जरूरत नहीं होगी। इसलिए शिक्षा क्षेत्र में सुधार के एजेंडे पर हम तेजी से काम करेंगे। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों, आईआईटी तथा अन्य प्रौद्योगिकी संस्थानों में विज्ञान जैसे विषयों में शोध के लिए उच्चस्तरीय 50 केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव है। थरूर ने कहा कि अगर यह केंद्र स्थापित हो जाएंगे तो देश में शोध का माहौल ही पूरी तरह बदल जाएगा। उन्होंने शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा मिशन की स्थापना करने तथा काकोदकर समिति की सिफारिशों के साथ-साथ शोध के क्षेत्र में व्यय दो फीसद बढ़ाए जाने पर जोर दिया। थरूर ने कहा कि रोजगार के पर्याप्त अवसरों के अभाव में देश में शिक्षित रोजगारों की संख्या बढ़ रही है। जिससे उनके माओवादी और आतंकवादी बनने का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि भारत में 621 विश्वविद्यालय तथा 33500 महाविद्यालय हैं, जिसके चलते यहां दुनिया भर में सबसे बड़ा उच्च शिक्षा संस्थान नेटवर्क है। छात्रों की भर्ती के मामले में हमारा स्थान दूसरा है।
भारतीय कंपनियों की जरूरत पूरी करने के लिए देश की मौजू दा शिक्षा पण्राली से ‘सुशिक्षित’ स्नातक नहीं मिल पा रहे हैं


Rashtirya Sahara National Edition 6-11-2012 शिक्षा Page -13

बिना नेट लेक्चरर बन सकेंगे पीएचडी धारक



यूजीसी ने सेंट्रल यूनिवर्सिटीज के शिक्षकों को प्रमोशन में प्वाइंट सिस्टम की बाध्यता से भी दी छूट
राकेश नाथ/एसएनबी नई दिल्ली। अब पीएचडी धारक नेट क्वालीफाई किए बिना सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में लेक्चररशिप के लिए अप्लाई कर सकेंगे। इसी के साथ यूजीसी ने लेक्र्चस को प्रमोशन में भी बड़ी राहत देने का फैसला किया है। उन्हें अब प्वाइंट सिस्टम की शतरे को पूरा नहीं करना पड़ेगा। अभी तक उन पर परफॉम्रेस बेस्ड एप्रेजल सिस्टम के तहत प्वाइंट्स लाने की बाध्यता रहती थी। एक कमेटी ने इन बदलावों के लिए आयोग के रेगुलेशन-2010 में संशोधन की सिफारिश की थी, जिसे 22 अक्टूबर को हुई एक बैठक में यूजीसी ने अप्रूव्ड कर दिया है। इस बैठक के मिनट्स अब जारी किए गए हैं। हालांकि डीयू में वर्ष 2010 के बाद से बिना नेट वाले पीएचडी धारकों की लेक्चरर के तौर पर नियुक्ति की जा रही है। यहां 2009 से पहले पीएचडी कर चुके लोगों के नेट क्वालीफाई करने की बाध्यता है। जबकि अन्य विश्वविद्यालयों में अभी तक पीएचडी के साथ नेट की बाध्यता थी। डीयू की कार्यकारी परिषद के सदस्य राजीव रे ने बताया कि यूजीसी के नए फैसले से अन्य यूनिवर्सिटीज में लेक्चररशिप की नौकरी पाने के इच्छुक हजारों पीएचडी धारकों को फायदा पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के प्रमोशन के लिए एकेडमिक परफॉम्रेस इंडिकेट एंड परफॉम्रेस बेस्ड एप्रेजल सिस्टम लागू कर दिया था। इसका डीयू में भी काफी विरोध हुआ था। इस योजना के तहत प्रमोशन के लिए शिक्षकों को विभिन्न तरह की शैक्षणिक गतिविधियों में भाग लेना पड़ता था, इसके एवज में उन्हें प्वाइंट्स मिलते थे और इन्हीं प्वाइंट्स के आधार पर प्रमोशन होता था। महाराजा अग्रसेन कॉलेज के प्राचार्य सुनील सोंधी ने कहा कि हालांकि यह योजना डीयू में लागू नहीं हुई थी। बाद में यूजीसी ने इस संबंध में एक री-विजिट कमेटी बना दी थी। (शेष पेज 2)

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