Friday, September 30, 2011

1052 नए उच्च प्राथमिक स्कूलों को भी हरी झंडी


केंद्र सरकार की पहल
उत्तर प्रदेश में शिक्षा के प्रसार और साक्षरता दर के लक्ष्य को हासिल करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राज्य के लिए 10,366 नए प्राथमिक स्कूलों और 1052 नए उच्च प्राथमिक स्कूलों को मंजूरी प्रदान कर दी है। कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए दो सेट स्कूल ड्रेस भी मंजूर की गई हैं। मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के नेतृत्व में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने सर्व शिक्षा अभियान के तहत उत्तर प्रदेश में 10,366 नए प्राथमिक स्कूल और 1052 नए उच्च प्राथमिक स्कूलों को मंजूरी प्रदान की है। जुलाई, 2011 में राज्य शिक्षा के अधिकार नियमों की अधिसूचना के अनुरूप इन स्कूलों को मंजूरी प्रदान की गई है जिसका उद्देश्य वंचित बच्चों को स्कूली शिक्षा के दायरे में लाना और उन्हें प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना है। नए प्राथमिक स्कूलोें में प्रत्येक में दो शिक्षक उपलब्ध कराए जाएंगे जबकि उच्च प्राथमिक स्कूलों में भाषा, गणित एवं विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के लिए तीन शिक्षक उपलब्ध कराए जाएंगे। सूत्रों ने बताया इन मंजूर स्कूलों के लिए 23,888 शिक्षक पद को मंजूरी प्रदान की गई है।केंद्र सरकार ने शहरी वंचित बच्चों के लिए 121 बहुआयामी स्कूलों को मंजूरी प्रदान की है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक कक्षा में पढ़ने वाले समाज के कमजोर और वंचित वर्ग के 1.75 करोड़ बच्चों को दो सेट स्कूल पोशाक प्रदान करने को भी मंजूरी प्रदान की गई है। केंद्र सरकार की ओर से यह कदम उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौम बनाने के उद्देश्य से उठाया गया है। गौरतलब है कि 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में साक्षरता दर 69.72 प्रतिशत है जिसमें पुरुष साक्षरता 79.24 प्रतिशत और महिला साक्षरता 59.26 प्रतिशत है। 2001 की जनगणना में राज्य की साक्षरता दर 56.27 प्रतिशत दर्ज की गई थी जिसमें पुरुष साक्षरता 67.30 प्रतिशत और महिला साक्षरता 43 प्रतिशत दर्ज की गई थी। 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में साक्षरों की संख्या 11,84,23,805 थी जबकि 2001 की जनगणना में यह 7,57,19,284 रही थी। हाल की रिपोर्ट में राज्य में स्कूलों एवं शिक्षकों की भारी कमी की बात भी सामने आई थी।

Monday, September 19, 2011

यूपी में स्नातक में 45 फीसदी अंक वाले भी दे सकेंगे टीईटी

 लखनऊ प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में अध्यापकों की भर्ती के लिए प्रदेश में अनिवार्य की गई शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में अब बीए, बीएससी व बीकॉम के अलावा स्नातक स्तर पर विभिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रम उत्तीर्ण कर एक वर्षीय बीएड पास करने वाले अभ्यर्थी भी शामिल हो सकेंगे। टीईटी के लिए स्नातक में न्यूनतम 50 फीसदी अंक की अनिवार्यता को 45 फीसदी कर दिया गया है। डीएड (विशेष शिक्षा) और बीएड (विशेष शिक्षा) उत्तीर्ण अभ्यर्थी भी टीईटी में शामिल हो सकेंगे। अनुसूचित जाति/जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, विकलांग श्रेणियों के अभ्यर्थियों को अर्हक अंकों में 5 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। टीईटी के बारे में 7 सितंबर को जारी शासनादेश में बदलाव करते हुए शासन ने संशोधित आदेश जारी कर दिया है। शिक्षा के अधिकार के तहत राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने 23 अगस्त 2010 को अधिसूचना जारी कर प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट के तौर पर टीईटी को अनिवार्य कर दिया था। उस अधिसूचना में ही एनसीटीई ने शिक्षकों की भर्ती के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता भी तय कर दी थी। एनसीटीई की उस अधिसूचना के आधार पर ही राज्य सरकार ने बीती 7 सितंबर को प्रदेश में टीईटी के आयोजन के बारे में शासनादेश जारी किया था। शासनादेश में कहा गया था कि टीईटी में वह सभी परीक्षार्थी शामिल हो सकेंगे, जिन्होंने न्यूनतम 50 फीसदी अंकों के साथ बीए/बीएससी/बीकॉम किया हो तथा एनसीटीई से मान्यता प्राप्त व उप्र सरकार से संबद्धताप्राप्त संस्था से एक वर्षीय बीएड किया हो। इस बीच एनसीटीई ने 29 जुलाई को नई अधिसूचना जारी कर शिक्षकों की भर्ती के लिए पूर्व में निर्धारित की गई शैक्षिक योग्यता में संशोधन कर दिया। नई अधिसूचना के मुताबिक ऐसे सभी अभ्यर्थी, जिन्होंने न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों के स्नातक और बीएड अर्हता या राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (मान्यता, मानदंड और क्रियाविधि) विनियमों के अनुसार न्यूनतम 45 प्रतिशत अंकों के साथ स्नातक तथा शिक्षा में एक वर्षीय स्नातक (बीएड) उत्तीर्ण किया हो, जनवरी 2012 तक कक्षा एक से पांच तक के लिए शिक्षक नियुक्त किये जाने के लिए पात्र होंगे

Saturday, September 17, 2011

प्ले स्कूलों के लिए निगम व सरकार के पास नहीं कानून

नई दिल्ली राजधानी में कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे प्ले स्कूलों पर न तो दिल्ली नगर निगम की लगाम है और न ही इन्हें रोक पाने के लिए दिल्ली सरकार के पास कोई नियम-कानून है। इसका खुलासा सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगे गए सवालों के जवाब से हुआ है। दिल्ली नगर निगम और दिल्ली सरकार ने तो यहां तक कह दिया कि उनके पास न तो प्ले स्कूल खोलने और न ही खुले स्कूलों पर कार्रवाई करने का कोई प्रावधान है। बड़ा सवाल यह है कि अगर राजधानी के प्ले स्कूलों में कोई हादसा हो जाता है तो कौन जिम्मेदार होगा? राजधानी में करीब डेढ़ हजार प्ले स्कूल चल रहे हैं जहां सवा दो साल से साढ़े तीन साल के बच्चे पढ़ रहे हैं। सूचना के अधिकार कानून के तहत अजय कुमार शर्मा ने दिल्ली सरकार और नगर निगम से जानकारी मांगी थी कि राजधानी में प्ले स्कूल खोलने के लिए क्या-क्या नियम और कायदे-कानून हैं। अगर कोई बिना नियम और कायदे-कानून के प्ले स्कूल खोलता है तो उस पर कार्रवाई के लिए क्या नियम हैं? इन सवालों पर दिल्ली नगर के उप निदेशक (मुख्यालय) की ओर से जवाब आया कि शिक्षा विभाग, दिल्ली नगर निगम में राजधानी में प्ले स्कूल खोलने के संबंध में कोई नियम नहीं है। मतलब साफ है कि प्ले स्कूल खोलना निगम के अनुसार गैर कानूनी है। इतना ही नहीं निगम से यह भी कहा कि जब खोलने के नियम नहीं हैं तो फिर कार्रवाई कैसे होगी? यह तो रहे नगर निगम के जबाव अब आपको बताते हैं दिल्ली सरकार के जवाब। दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय के सहायक निदेशक एम. इक्का ने जवाब में कहा है कि राजधानी में प्ले स्कूल खोलने के लिए कोई नियम नहीं बना है। प्ले स्कूलों पर कार्रवाई के लिए कोई कानून भी सरकार के पास नहीं है। इसका मतलब साफ है कि एक कमरे और दो कमरे में प्ले स्कूल खोलकर दुकानदारी पर लगाम लगने वाली नहीं है

Thursday, September 8, 2011

परीक्षाओं में अब गोपनीयता का बहाना नहीं चलेगा


प्रतियोगी परीक्षा संचालित कराने वाली संस्थाओं को अब पुरानी मानसिकता को बदलना होगा और सूचना का अधिकार (आरटीआइ) कानून के तहत परीक्षार्थियों को परीक्षा से जुड़ी सारी जानकारी उपलब्ध करानी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है। जस्टिस आरवी रवींद्रन और एके पटनाइक की पीठ ने इस फैसले के साथ इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स (आइसीएआइ) की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था इस पारदर्शिता कानून के तहत एक अधिकारी संस्था होना चाहिए, जो आरटीआइ के लिए आने वाले आवेदनों की छंटनी करे। पीठ ने कहा, गोपनीयता का बहाना अब ज्यादा दिन नहीं चलेगा। प्रतियोगी परीक्षा संचालित कराने वाली संस्थाओं, जैसे आइसीएआइ को समझना होगा यह युग ज्यादा से ज्यादा सूचनाओं के आदान-प्रदान का है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि पारदर्शिता ही एकमात्र रास्ता है, जो भ्रष्टाचार को कम कर सकता है। जजों ने कहा, इसमें संदेह नहीं कि पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त काम करना और रिकॉर्डो को ज्यादा संभाल कर रखना होगा। पीठ ने कहा कि अतिरिक्त काम को सूचना न देने की ढाल के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इन संस्थाओं को आरटीआइ के प्रावधानों को स्वीकारना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश आइसीएआइ द्वारा दायर उस अपील की सुनवाई करते दिए जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त कर सकते हैं।