Thursday, February 3, 2011

सिर्फ तीन साल में यूपी के स्कूलों में घट गए 12 लाख बच्चे


चुनावी जंग में नारों पर भारी पड़ रहे मुद्दों के बीच बिहार में नीतीश कुमार ने स्कूली शिक्षा को भुना तो लिया, लेकिन क्या उत्तर प्रदेश में भी यह संभव हो पाएगा? क्योंकि स्कूली पढ़ाई-लिखाई के मामले में दोनों ही राज्य देश की तस्वीर बदरंग किए हुए हैं। आलम यह है कि उत्तर प्रदेश में तो महज तीन साल में सिर्फ प्राइमरी में लगभग 12 लाख बच्चे स्कूल से नदारद हो गए। जबकि बिहार में भी कई मामलों में स्कूली पढ़ाई का ढांचा चरमराया हुआ है। सरकारी तथ्यों पर गौर करें तो तीन साल पहले उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में दो करोड़ 51 लाख बच्चे पढ़ रहे थे। 2008-09 में वह घटकर दो करोड़ 49 लाख पर आ गए। जबकि 2009-10 में यह संख्या और घटकर दो करोड़ 39 लाख पर आ गयी। सूत्रों के मुताबिक इस स्थिति का खुलासा राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय (न्यूपा) की एक ताजा रिपोर्ट से हुआ है। बताते हैं कि महज तीन साल के भीतर उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों से लगभग 12 लाख बच्चों का नदारद होना एक खतरनाक संकेत है। सवाल यह है कि आखिर दाखिलों में लाखों बच्चों की कमी की असल वजह क्या है? छह से चौदह साल तक के बच्चों को अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा के कानून में एक शिक्षक पर 30 बच्चों को पढ़ाने का प्रावधान है। सूत्रों की मानें तो न्यूपा की रिपोर्ट उत्तर प्रदेश और बिहार की अलग ही कहानी बयां करती है। बिहार के 45 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश के 25 प्रतिशत से अधिक स्कूलों (प्राइमरी व अपर प्राइमरी) में अब भी एक शिक्षक पर 60 बच्चों से अधिक को पढ़ाने का दबाव है। झारखंड में लगभग 19 प्रतिशत स्कूल इसी श्रेणी में हैं। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ 12 प्रतिशत स्कूल इस श्रेणी में हैं। इतना ही नहीं, एक क्लासरूम में छात्रों के बैठने का राष्ट्रीय औसत 32 का है, जबकि बिहार में अब भी एक कक्षा में औसतन 89 छात्र और उत्तर प्रदेश में 36 छात्र बैठते हैं। झारखंड की स्थिति उत्तर प्रदेश से भी खराब है, वहां एक क्लासरूम में औसतन 47 छात्र बैठते हैं। सूत्रों का कहना है कि बड़े राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों के लिए यह और चिंताजनक है कि वहां महज एक शिक्षक के भरोसे चलने वाले स्कूलों की संख्या घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। मसलन बिहार में 2008-09 में 4.93 प्रतिशत एकल शिक्षक स्कूल थे, जो 2009-10 में बढ़कर 5.44 प्रतिशत हो गए। इसी अवधि में उत्तर प्रदेश में भी एकल शिक्षक स्कूल 7.49 से बढ़कर 7.87 प्रतिशत और झारखंड में 7.41 प्रतिशत से बढ़कर 8.02 प्रतिशत तक पहंुच गये। गौरतलब है कि बिहार विधानसभा के चुनाव में नीतीश कुमार की भारी जीत के पीछे स्कूली शिक्षा में सुधार को भी एक वजह बतायी जा रही है।



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