Thursday, February 24, 2011

नव नालंदा में झलकेगा प्राचीन विश्वविद्यालय का गौरव


प्राचीन काल में विश्व के लिए शिक्षा का केंद्र रहे नालंदा विश्वविद्यालय की जगह बन रहे नव नालंदा को पुराने गौरव से जोड़ने के लिए माथापच्ची शुरू हो गई है। संस्कृति मंत्रालय के सचिव व अधिकारियों के साथ हुई बैठक में मेंटर ग्रुप के अध्यक्ष अम‌र्त्य सेन व दूसरे सदस्यों ने माना कि तालमेल के साथ विश्वविद्यालय की पुरानी उपलब्धियों को प्रमुखता से उभारना जरूरी होगा। ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे पुस्तकालय से लेकर दूसरी चीजों में भी पुराने गौरव का अहसास हो। साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि नए निर्माण से पुराने निर्माण पर कोई असर न पड़े। नालंदा को लेकर हो रही कवायद के बीच बुधवार को मेंटर ग्रुप के कुछ सदस्यों ने संस्कृति मंत्रालय के साथ भी बैठक की। बताते हैं कि एक घंटे से ज्यादा चली बैठक में पुराने गौरव को जीवित करने के मुद्दे पर चर्चा हुई। यह माना गया कि पुराने गौरव और उपलब्धियों को फिर से जीवित करना होगा और उसके साथ तालमेल बिठाकर ही नव नालंदा को परवान चढ़ाना होगा। इसमें एक बड़ी जिम्मेदारी एएसआई को निभानी होगी। प्रो0 सौगत बोस ने कहा कि एएसआई की भूमिका पर चर्चा हुई। माना गया कि एएसआई को नालंदा पर प्रकाशित पुस्तकों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। गौरतलब है कि एएसआई अपनी स्थापना का 150वां साल मना रहा है। इस लिहाज से भी एएसआई के लिए यह सार्थक काम होगा। विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में भी एएसआई को भूमिका निभानी होगी। ध्यान रहे कि नालंदा का विराट पुस्तकालय विश्वप्रसिद्ध रहा है। इसके बारे में कई तथ्य व कहानियां प्रचलित रही हैं। नए विश्वविद्यालय के पुस्तकालय के बारे में भी एएसआई को भूमिका निभानी होगी ताकि पुराने के साथ कुछ तालमेल दिखे। यूं तो नया निर्माण अवशेष से काफी दूर हो रहा है, लेकिन चिंता बरकरार है। लिहाजा एएसआई यह भी ध्यान रखेगा कि उस पर कोई असर न हो। बुधवार की बैठक में अम‌र्त्य के साथ साथ प्रो0 सौगत बोस, प्रो0 गोपा सबरवाल, तानसेन सेन, संस्कृति सचिव जवाहर सरकार व एएसआई के महानिदेशक गौतमसेन सेनगुप्ता शामिल थे

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