Tuesday, February 15, 2011

निजी कॉलेजों में आरक्षण अवैध


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, स्ववित्त पोषित और वित्तविहीन शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण सही नहीं
हाईकोर्ट की इलाहाबाद पीठ ने उत्तर प्रदेश की स्व वित्तपोषित और वित्तविहीन शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए जाति आधारित आरक्षण लागू करने के प्रावधानों को अवैध और संविधान की मूल भावना के विपरीत बताया है। अदालत ने कहा कि वित्तविहीन संस्थाओं में आरक्षण संविधान के 93वें संशोधन 2005 की भावना के विपरीत है। इसके साथ ही उसने दीनदयाल उपाध्याय विवि गोरखपुर की प्रवेश समिति द्वारा किए गए आरक्षण संबंधी सभी निर्णयों को रद्द कर दिया है। जस्टिस सुनील अंबवानी और योगेश चंद्र गुप्ता की खंडपीठ ने सुधा तिवारी की रिट पर यह निर्णय दिया।
वर्ष 2009 में दाखिल इस याचिका पर अदालत ने 25 नवंबर 2010 को फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे 11 फरवरी 2011 को सुनाया गया। सुधा ने 2008-09 में दीनदयाल उपाध्याय विवि गोरखपुर में बीपीएड की प्रवेश परीक्षा दी थी। प्रवेश में आरक्षण लागू होने के कारण सुधा को सफल होने के बावजूद दाखिला नहीं मिल सका था। इस पर उसने याचिका के माध्यम से 93 वें संविधान संशोधन और वर्ष 2006 के आरक्षण कानून को निजी कॉलेजों में लागू करने की वैधता को चुनौती दी थी। अदालत का कहना था कि अशोक कुमार ठाकुर के मामले में भी निजी कॉलेजों में आरक्षण लागू करने को अनुच्छेद 14,15 और 19(1) जी के विपरीत करार दिया गया है।

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