Friday, February 25, 2011

शिक्षा को बड़ी उम्मीद है बजट से


बजट के पहले आशाओं तथा आशंकाओं पर र्चचा स्वाभाविक ही नहीं, कई मायनों में आवश्यक भी है। शिक्षा के क्षेत्र में तो समाज के हर वर्ग की रुचि होती है और इसमें अपेक्षाएं भी सदा बढ़ती रहती हैं। बजट से घोषित नीतियों तथा कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में गतिशीलता तथा गुणवत्तापरक सुधार की आशा की जाती है। शिक्षा के मामले में सबसे पहले सबसे महत्वपूर्ण परियोजना लेंिशक्षा के मूल अधिकार विधेयक का एक अप्रैल 2010 से लागू होना। इसके लिए सबसे बड़ी परियोजना है सर्वशिक्षा अभियान यानी एसएसए। इसके अन्तर्गत प्रारंभिक शिक्षा के लिए पिछले चार वर्षो में 54371 करोड़ रुपये खर्च हुए। इसके सामने अनेक समस्याएं हैं। अध्यापकों की भारी कमी है, स्वीकृत पदों में 20 प्रतिशत से अधिक भरे नहीं गये हैं। स्वीकृत 10.8 लाख और भरे गये 8.8 लाख। यदि नये अधिनियम के अनुसार हर बच्चे को स्कूल लाना तथा वहां रखना है तो इससे कहीं अधिक अध्यापकों की जरूरत है। शिक्षा के जिला सूचना संकलन द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 29 प्रतिशत स्कूलों के पास 2009-10 में पक्के भवन नहीं थे। अत: बजट से सबसे महत्वपूर्ण अपेक्षा यही है सभी राज्यों को इतने संसाधन उपलब्ध कराये जाएं कि सभी बच्चों को सही मायने में शिक्षा का मूल अधिकार कौशल प्रशिक्षण के साथ मिल सके। स्कूल पूर्व की शिक्षा व्यवस्था सरकारी स्कूलों में उपलब्ध कराने की व्यवस्था जरूरी है। इसके प्रावधान न होने के कारण सरकारी स्कूल के बच्चे कक्षा एक में आने के पहले ही पब्लिक स्कूलोंके बच्चों से काफी पीछे रह जाते हैं। इस असमानता को दूर करने के लिए आवश्यक संसाधनों का आवंटन राष्ट्र के कर्त्तव्य के रूप में लिया जाना चाहिए। पिछले वर्ष स्कूल ही नहीं विश्वविद्यालयों तथा अन्य उच्च संस्थाओं में गुणवत्ता की कमी पर र्चचा होती रही। अध्यापकों के प्रशिक्षण तथा पुनर्परीक्षण के लिए वर्तमान व्यवस्थाएं नाकाफी हैं। वर्तमान व्यवस्थाएं अपर्याप्त हैं, इसका सटीक प्रमाण है पिछले चार वर्षो में प्रशिक्षण के लिए आवंटित 4000 करोड़ रुपये की धनराशि में केवल 1444 करोड़ यानी 36 प्रतिशत ही खर्च किया जाना। जिस प्रकार जीने के अधिकार में शिक्षा का अधिकार सन्निहित माना गया, उसी तरह शिक्षा पाने के अधिकार में साधन सम्पन्न स्कूल में प्रशिक्षित योग्य शिक्षकों से शिक्षा पाना भी शामिल है। अध्यापकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था के पुनरावलोकन तथा राज्यों में नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावशाली बनाने के लिए भी संसाधनों का आवंटन आवश्यक है। गांवों में ही नहीं, दिल्ली जैसे शहर तक में सरकारी स्कूलों में संसाधनों की कमी पाई जाती है। इसे दूर करने के उपाय तथा समानुपातिक संसाधन भविष्य में आशाजनक परिणाम देंगे। नये स्कूल खुलने जरूरी हैं मगर जो चल रहे हैं उनके सुधार व सही स्वरूप में चलते रहने की व्यवस्था जरूरी है। प्राथमिक शालाओं में सरकारी स्कूलों में समाज के वंचित, दलित तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग से ही अधिकांश बच्चे आते हैं। इन्हें बराबरी के आधार पर खड़ा करने के लिए संसाधन कम नहीं पड़ने चाहिए। शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत आवंटन का वादा हर सरकार करती है मगर उसे क्रियान्वित कोई नहीं करता है। राज्य तथा केन्द्र सरकार का शिक्षा पर मिलाजुला खर्च/आवंटन 2000-01 में 82879.2 करोड़ था जो जीडीपी का 3.94 प्रतिशत तथा कुल खर्च का 12.3 प्रतिशत था। 2008-09 में यह 198324.7 करोड़ था जो जीडीपी का 3.40 प्रतिशत तथा कुछ खर्च का 11.6 प्रतिशत था। शिक्षा के मूल अधिकार के क्रियान्वयन के लिए ताकि हर 6-14 वर्ष का बालक- बालिका स्कूल जा सके, एक अनुमान के अनुसार 1.82 लाख करोड़ रुपयों की आवश्यकता होगी। क्या नया बजट इसे ध्यान में रखेगा और जीडीपी के छ: प्रतिशत का लंबित वादा पूरा करने का साहस करेगा? यदि ऐसा नहीं होगा तो भारत के 70-80 प्रतिशत बच्चों को गुणवत्तापरक प्रारंभिक शिक्षा नहीं मिल पायेगी और जब शिक्षा की नींव कमजोर होगी तो समाज में अनेक विषमताएं उभरेंगी। प्रश्न है कि केन्द्रीय विद्यालयों/नवोदय विद्यालयों के संसाधन मानक देश के सभी सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं लागू होने चाहिए। कभी न कभी यह समकक्षता लानी ही होगी। उच्च शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में अनेक दबाव बढ़ रहे हैं। इस स्तर पर युवाओं के लिए सीमित अवसर है अत: विदेश जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या लगातार बढ़ रही है जो अनेक प्रकार की समस्याओं तथा शोषण का आधार बनती है। नये संस्थान सरकार को स्वयं भी खोलने होंगे। इस स्तर पर कौशलों के उच्चस्तरीय प्रशिक्षण नये विभाग तथा गतिशील व्यवस्था पर खर्च करना आवश्यक है। शोध का स्तर चिन्ताजनक है, इस पर अधिक ध्यान देना आवश्यक है। उच्च शिक्षा में नामांकन अगले वर्ष में 14-15 प्रतिशत बढ़ाना ही चाहिए तथा अगली योजना में उसे 25 प्रतिशत तक ले जाने की आधारभूत व्यवस्था प्रारंभ हो जानी चाहिये। शिक्षा व्यवस्था में निर्मलता, कर्त्तव्यनिष्ठा, मूल्यबद्धता जैसे कारक हर तरफ हर व्यक्ति में दिखने चाहिए। मूल्यों की शिक्षा, नैतिकता के अध्ययन केन्द्र तथा आध्यात्मिक विश्वविद्यालय खोलने जैसे नवाचारों के लिये वित्तमंत्री आवश्यक आवंटन कर सकें तो यह सराहनीय कदम होगा।



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