Wednesday, February 23, 2011

जामिया मिलिया को मिला अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा


जामिया मिलिया इस्लामिया ने अपने नब्बे साल के इतिहास में भले ही कभी अपना अल्पसंख्यक स्वरूप न छोड़ा हो, लेकिन आधिकारिक रूप से इसे तय होने में कई दशक लग गए। मंगलवार को अंतत: यह तय हो गया कि जामिया मिलिया इस्लामिया केंद्रीय विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान है। अब वहां न सिर्फ मुस्लिम बच्चों को दाखिले में 50 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा, बल्कि पहले से चला आ रहा अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों को 22.5 प्रतिशत और जामिया से ही स्कूली पढ़ाई शुरू करने वालों का 25 प्रतिशत का कोटा भी खत्म हो जाएगा। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग ने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक स्वरूप के बारे में यह एतिहासिक फैसला देकर उसकी नई मंजिल की राह तय कर दी है। फैसला सुनाने के बाद आयोग के चेयरमैन जस्टिस (सेवानिवृत्त) एमएसए. सिद्दीकी ने कहा, हमने कानूनी पहलुओं के आधार पर जामिया को अल्पसंख्यक दर्जे का शिक्षण संस्थान (विश्वविद्यालय) घोषित किया है। संविधान के अनुच्छेद 30 (1) एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग अधिनियम की धारा 2 (जी) में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान परिभाषित हैं। उस रोशनी में देखें तो अपनी स्थापना के बाद से अब तक कभी भी जामिया अपने अल्पसंख्यक स्वरूप के दायरे से बाहर नहीं रहा है। गौरतलब है कि संप्रग की पिछली सरकार में उच्च शिक्षण संस्थानों के दाखिले में पिछड़े वर्ग के छात्रों को 27 प्रतिशत आरक्षण के कानून के साथ ही जामिया में उसके अमल को लेकर विरोध शुरू हो गया था। जामिया टीचर्स एसोसिएशन की ओर से उसके तत्कालीन सचिव प्रो. तबरेज आलम और जामिया ओल्ड ब्वायज एसोसिएशन और जामिया स्टूडेंड यूनियन ने 2006 में न सिर्फ इस आरक्षण का विरोध किया, बल्कि विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे के लिए आयोग में वाद भी दायर कर दिया। वादकारियों ने इसमें जामिया के कुलपति, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को पक्षकार बनाया था। इस बीच, एक अहम बात यह भी रही कि खुद विश्वविद्यालय प्रशासन (रजिस्ट्रार एसएम अफजल) ने 2006 में आयोग में शपथ पत्र देकर जामिया को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने का विरोध किया था। हालांकि विश्वविद्यालय ने बाद में नरम रुख अख्तियार कर लिया। जबकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय चाहता था कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित इसी तरह के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के बारे में फैसला आने के बाद ही आयोग इस पर निर्णय करे। आयोग के इस फैसले पर जामिया टीचर्स एसोसिएशन के सचिव डॉ. रिजवान कैसर ने कहा कि विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे के बावजूद उसके धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर कोई असर नहीं पड़ेगा। बस दाखिले में सिर्फ दो श्रेणी रह जाएंगी, जिसमें मुस्लिम समुदाय के बच्चों को 50 प्रतिशत और बाकी में सभी दूसरे समुदाय को पढ़ाई का मौका मिलेगा।


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