Monday, February 7, 2011

योजना आयोग ने प्रदेश सरकार को लिखी चिट्ठी


देश के विकास की तस्वीर बिगाड़ रहा यूपी
क्या आप जानते हैं कि यूपी में तीसरी से पांचवी कक्षा तक के 51.4 फीसदी बच्चे पहली कक्षा की किताब पढ़ने के काबिल भी नहीं। तीसरी कक्षा से पांचवीं तक के केवल 8.92 प्रतिशत बच्चे ही अंग्रेजी का साधारण वाक्य पढ़ पाते हैं। यही नहीं, क्या आप यकीन करेंगे कि 2005-06 में प्रदेश में प्रति लाख आबादी पर प्राइमरी स्कूलों की संख्या महज 74 थी। और तो और तीन साल बाद यानी 2008-09 में इसकी संख्या में बढ़कर केवल 75 ही हो पाई। यानी तीन साल में प्रति लाख की आबादी पर प्राइमरी स्कूल की संख्या में महज एक का इजाफा हो पाया। प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में विकास की यह डरावनी तस्वीर पेश की गई है मुख्यमंत्री को भेजी गई योजना आयोग की एक चिट्ठी में।
योजना आयोग ने अपनी चिट्ठी में इस बात पर बेहद चिंता जताई है कि प्रदेश में शिक्षा ही नहीं सेहत और बुनियादी क्षेत्र के विकास समेत कई दूसरे क्षेत्रों में अपेक्षा के अनुरूप विकास नहीं होने से राष्ट्रीय विकास की तस्वीर बिगड़ रही है।
इस चिट्ठी में कहा गया है कि प्रदेश में साक्षरता दर कम तो है ही साथ ही गांव व शहरों की साक्षरता व महिला पुरूष साक्षरता में बड़ा फासला है। विकास योजनाओं केलिए मिलने वाले धन का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। बुंदेलखंड पैकेज के तहत दिया गया पैसा समय से खर्च नहीं हो पा रहा है। पैकेज के तहत सिंचाई सेक्टर में केवल 2 प्रतिशत ही खर्च हुआ और वह भी वेतन पर। दूसरी ओर महंगी बिजली की खरीद कर प्रदेश सरकार अपना खजाना लुटा रहा। आयोग का कहना है कि सबसे बड़ी चुनौती रैपिड ग्रोथ पाने की है। इसके लिए भारी पूंजी निवेश की जरूरत है। 12 वीं योजना तैयार की जा रही है।
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने मुख्यमंत्री मायावती को लिखे पत्र में विभिन्न सेक्टर में यूपी की दिसंबर 2010 तक स्थिति से अवगत कराया है। पत्र में कहा गया है कि विकास दर व प्रति व्यक्ति आय में पहले से बढ़ोतरी हुई है पर यह यह पर्याप्त नहीं है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था सुधारने पर ज्यादा तेजी से काम करने की जरूरत है। आबादी बढ़ने की अत्याधिक रफ्तार के असर को बेअसर करने के लिए जीडीपी में और ज्यादा ग्रोथ लाने की जरूरत है। पत्र में कहा गया है कि विकास के अधिकांश मानकों में यूपी राष्ट्रीय औसत से लगातार पीछे है आर्थिक स्थिति में सुधार की जरूरत है। पत्र में कुछ मामलों में सरकार के कदम का समर्थन किया गया है।

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