Friday, February 25, 2011

गरीबों को मुफ्त सीट पर आंसू न बहाएं निजी स्कूल


सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निजी शिक्षण संस्थान आर्थिक रूप से कमजोर तकबे (ईडब्लूएस) के छात्रों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित रखने के सरकार के फैसले की शिकायत नहीं कर सकते क्योंकि यह देश के भविष्य की समृद्धि के लिए एक निवेश है। मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या, न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और स्वतंत्र कुमार की सदस्यता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर तबके के छात्रों को निजी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित करने की सरकार की कोशिशों में कुछ भी गलत नहीं है। निजी शिक्षण संस्थाओं की ओर से दायर कई अपीलों पर सुनवाई के दौरान पीठ ने ये बातें कही। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर निजी स्कूल यह स्थापित करने में कामयाब हो जाएं कि शिक्षा का अधिकार कानून के लागू होने से संवैधानिक सिद्धातों का उल्लंघन हुआ है तो वह इस कानून को अमान्य कर देगा। पीठ ने सवाल किया, अगर निजी स्कूलों में बेहतर शिक्षा दी जाती है तो इसमें छात्रों को 25 फीसदी सीटें देने में गलत क्या है? आज आप देश के लिए एक निवेश कर रहे हैं। बच्चे ही इस देश के भविष्य हैं। क्या अदालत इसमें हस्तक्षेप कर इसे अतार्किक कह सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विकास सिंह की इन दलीलों को दरकिनार कर दिया कि शिक्षा का अधिकार कानून गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों के मौलिक अधिकारों पर प्रहार है। निजी स्कूलों की वकालत करते हुए सिंह ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर तबके के छात्रों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित रखने से मध्य वर्ग एवं अमीर वर्ग के छात्रों को निजी शिक्षण संस्थानों में उनकी सीटों से वंचित होना पड़ा है।

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