Saturday, February 12, 2011

हमारी शिक्षा का सच


शिक्षा के गिरते स्तर पर रमेश कुमार दुबे की टिप्पणी
उत्तर प्रदेश में भारत तिब्बत सीमा पुलिस की भर्ती के दौरान हुए हादसे ने देश में बेरोजगारी की भीषण समस्या को एक बार फिर उजागर कर दिया है। बेरोजगारी का ही आलम है कि बीटेक-एमबीए डिग्रीधारी युवक भी सफाई कर्मचारी और होमगार्ड बनने की कतार में खड़े हैं। प्रमुख उद्योग संगठन एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक भारत का सेवा क्षेत्र कुशल कामगारों की भारी कमी से जूझ रहा है। रिपोर्ट में एक चौंकाने वाली बात यह है कि भारतीय युवाओं की बड़ी संख्या बेरोजगारी के ही काबिल है न कि रोजगार के। देश में हर साल दो लाख एमबीए, छह लाख से ज्यादा इंजीनियारिंग स्नातक और इससे भी कहीं ज्यादा संख्या में सामान्य स्नातक निकलते हैं, लेकिन इनमें से एक-चौथाई ही नौकरी योग्य होते हैं। इसके अतिरिक्त देश में करीब सात हजार औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान यानी आइटीआइ हैं। फिर हमारे देश में औद्योगिक कौशल के विकास के मामले में भारी क्षेत्रीय असंतुलन है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 90 फीसदी स्नातक नौकरी पाने योग्य नहीं होते। इसका कारण है कि जहां आइटी, सेवा, मानव संसाधन, बीमा जैसे क्षेत्रों में 90 फीसदी नौकरियां व्यावसायिक व प्रबंधकीय रूप से दक्ष लोगों के लिए हैं वहीं देश की कार्यशील आबादी के महज छह फीसदी को ही व्यावसायिक शिक्षा मिल पाती है। इसके विपरीत दक्षिण कोरिया के 96 फीसदी, जापान के 80 फीसदी, जर्मनी के 75 फीसदी कामगारों को व्यावसायिक शिक्षा मिलती है। आज चीन दुनिया में सबसे तेजी से विकास कर रहा है तो इसमें उसके पांच लाख से अधिक व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों से निकले करोड़ों कुशल कामगारों का बड़ा हाथ है। भारत में कुशल कामगारों की कमी अब महज एक समस्या न रहकर संकट में तब्दील हो गई है। यह आर्थिक विकास में बाधा बनकर उभरी है। देश की 1.2 अरब की आबादी में 77 करोड़ लोगों की आयु 35 वर्ष से कम है। भारत में इस आयु वर्ग की औसत आयु जहां 25 वर्ष है वहीं चीन में 34 वर्ष। इस प्रकार युवा आबादी के मामले में चीन की तुलना में हमें लगभग एक दशक का लाभ हासिल होने के बावजूद हम पिछड़ रहे हैं। 2007 में 21 विभिन्न क्षेत्रों के लिए कुशल मानव संसाधन तैयार करने के लिए राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) की स्थापना की गई, लेकिन यह प्रयास आंशिक रूप से ही सफल हो पाया है। हमारी शिक्षा प्रणाली बदलते जमाने की मांगों के अनुरूप नए कौशल का प्रशिक्षण न देकर पुराने ढर्रे पर चल रही है। इसीलिए उदारीकरण के वर्तमान दौर में सिर्फ कुशल पेशेवरों को मोटे वेतन के रूप में लाभ पहुंचा और निचले स्तर के अकुशल लोग मुंह ताकते रह गए। बेरोजगारी बढ़ाने वाली शिक्षा व्यवस्था में जैसे-जैसे सेवा क्षेत्र का विस्तार हो रहा है वैसे-वैसे नए-नए उद्यम सामने आ रहे हैं। इनके लिए दक्ष मानव संसाधन की आवश्यकता है। इस काम के लिए इन्हें विशेष कौशल प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। भारत अपनी विशाल मानव शक्ति को प्रशिक्षित कार्यबल में बदलकर इस मौके का फायदा उठा सकता है। ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2020 तक विश्व के प्रत्येक विकसित देश में कार्यशील जनसंख्या की भारी कमी हो जाएगी और इसके उलट भारत में लगभग 5 करोड़ अतिरिक्त कार्यशील जनसंख्या होगी। स्पष्ट है, वर्ष 2020 भारत के लिए सुनहरे भविष्य और मौके लेकर आ रहा है, लेकिन यह तभी संभव होगा जब हम तेजी से बदलती दुनिया में अक्षर ज्ञान, गणना करने वाले साक्षरता कार्यक्रम और कामचलाऊ पढ़ाई-लिखाई की जगह हुनर बढ़ाने वाले प्रशिक्षण को बढ़ावा दें। इस काम के लिए हमें शिक्षा के मौजूदा ढांचे में आमूलचूल बदलाव के साथ-साथ शिक्षक प्रशिक्षण की भी व्यापक व्यवस्था करनी होगी। यदि हम यह सब कर पाते हैं तो आने वाले अवसर का न सिर्फ लाभ उठा सकेंगे, बल्कि देश को आगे बढ़ा सकेंगे। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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