Tuesday, March 15, 2011

संयुक्त प्रवेश परीक्षा से एमसीआइ ने खड़े किए हाथ


मेडिकल में दाखिला पाने के इच्छुक छात्रों की मुश्किलें इस साल कम नहीं होगी। न ही पीजी में प्रवेश चाहने वाले एमबीबीएस डॉक्टरों की परेशानी में कोई कमी आएगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) ने एमबीबीएस और पीजी कोर्स के लिए इसी साल से संयुक्त प्रवेश परीक्षा शुरू करने से हाथ खड़े कर दिए हैं। एमसीआइ के संचालक मंडल की सदस्य सीता नायक ने दैनिक जागरण से बातचीत में साफ तौर पर माना कि इस संयुक्त प्रवेश सह पात्रता परीक्षा को इसी सत्र से शुरू नहीं किया जा सकता। काफी विचार-विमर्श के बाद यह पाया गया है कि व्यावहारिक रूप से यह मुमकिन नहीं होगा। मेडिकल के पीजी पाठ्यक्रमों के लिए पहले ही प्रवेश परीक्षा हो चुकी है। बैचलर कोर्स के लिए भी न सिर्फ तारीखों की घोषणा हो चुकी है, बल्कि छात्रों को प्रवेश पत्र तक जारी हो चुके हैं। अब इतनी जल्दबाजी में नई व्यवस्था लागू करना छात्रों के लिए परेशानी कम करने के बजाय बढ़ाने वाला होगा। अब एमसीआइ को अपनी असमर्थता सुप्रीम कोर्ट के सामने भी रखनी होगी। छात्रों और एमसीआइ की अपील पर ही सुप्रीम कोर्ट ने 7 मार्च को अपने फैसले में इसी साल से यह परीक्षा आयोजित करने की बात कही थी। इस बारे में पूछे जाने पर सीता नायक कहती हैं कि कोर्ट ने इसे लागू करने का आदेश नहीं दिया था, बल्कि कहा था कि इसे लागू किए जाने से रोका नहीं जा सकता। इस मामले में एमसीआइ की पैरवी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेंद्र सरन कहते हैं, सुप्रीम कोर्ट में अब एक मई को इस मामले की सुनवाई होनी है। तब हमें अदालत के सामने सारी स्थिति रखनी होगी। सूत्रों के मुताबिक इस मामले पर एमसीआइ के संचालक मंडल के सदस्यों के साथ स्वास्थ्य मंत्रालय की बैठक भी हो चुकी है। मंत्रालय ने भी इस बारे में यही राय रखी है। एमसीआइ ने इस परीक्षा का प्रस्ताव इसलिए किया था, ताकि न सिर्फ छात्रों को एक ही सत्र में एक दर्जन से ज्यादा अलग-अलग परीक्षा देने के झमेले से छुट्टी मिल सके, बल्कि दाखिले में होने वाले भारी फर्जीवाड़े पर भी काफी हद तक अंकुश लग सके। सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्य सरकारों और निजी कॉलेजों के एतराज के बावजूद इसे मंजूरी दी है|

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