Sunday, March 6, 2011

वैज्ञानिक शिक्षा की अनदेखी


विज्ञान की शिक्षा के प्रति लापरवाही बरते जाने पर लेखक  की राय
विज्ञान ने मानव जीवन की भलाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। किसी भी चीज के विशिष्ट ज्ञान को विज्ञान कहते हैं। प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन प्रभाव की खोज के लिए नोबल पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई और अश्वेत भौतिकीविद सर सीवी रमन ने ही पहली बार तबले और मृदंगम के हार्माेनिक प्रकृति का पता लगाया था। उनकी इस विशिष्ट उपलब्धि के लिए राष्ट्रीय विज्ञान दिवस प्रति वर्ष मनाया है। वास्तव में विज्ञान दिवस का आयोजन वैज्ञानिक प्रतिभाओं को प्रेरणा देती है और लोगों को विज्ञान के महत्व एवं कार्यक्षेत्र के बारे में सचेत करता है। यह अलग बात है कि आज हम भारत को विज्ञान और वैज्ञानिक शोध के क्षेत्र में पीछे पा रहे हैं या कम से कम वहां तो नहीं, जहां इसे होना चाहिए था। यह आर्यभट्ट, ब्रंाभट्ट, रामानुजम, भास्कर और सीवी रमन जैसे वैज्ञानिकों का देश है। अगर हमने अपनी समृद्ध वैज्ञानिक परंपरा को ईमानदारी के साथ आगे बढ़ाया होता तो आज भारत विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी होता। ऐसा नहीं है हमने उपलब्धियां हासिल नहीं की हैं, लेकिन हमारी क्षमता के लिहाज से यह काफी कम है। देश में तमाम मेधावी छात्रों और वैज्ञानिकों के होते हुए भी कई छोटे देश वैज्ञानिक शोध के मामले में हमसे आगे निकल चुके हैं। सन 1930 में सीवी रमन को उनके खोज के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, लेकिन रमन स्कैनर का विकास किया दूसरे देशों ने। यह हमारी नाकामी नही तो और क्या है? सरकारी शोध संस्थानों की मौजूदगी के बावजूद भारत के विश्वविद्यालय वैज्ञानिक शोध के परंपरागत केंद्र रहे हैं। इनकी दिनोंदिन बढ़ती संख्या के बावजूद पैसे की कमी अथवा आर्थिक उपेक्षा के कारण हम कुछ विश्वविद्यालयों को छोड़कर बाकी पिछड़ रहे हैं। दुनिया के ज्यादातर विकसित देश वैज्ञानिक शोध कार्यो को बढ़ावा देने के लिए अपने रिसर्च फंड का 30 प्रतिशत धन विश्वविद्यालयों को देते हैं, लेकिन अपने देश में यह महज छह प्रतिशत है। शोध के अलावा पढ़ाई के मामले में भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है, ताकि यूनिवर्सिटी सिर्फ डिग्री बांटने वाली संस्था बनकर न रह जाएं। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 98वें अध्यक्ष डॉ. केसी पांडेय के अनुसार पूरे देश के विश्वविद्यालयों में रेटिंग सिस्टम अनिवार्य होना चाहिए। एक ऐसी समान प्रणाली की जरूरत है जो सभी विश्वविद्यालयों को एक तराजू पर कस सके। विज्ञान की उच्च स्तरीय पढ़ाई के साथ-साथ शोध को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। आज स्थिति यह है कि नौकरी पाने और ज्यादा पैसा कमाने की होड़ में छात्र वैज्ञानिक शोधों से किनारा कर रहे हैं। इंजीनियरिंग व एमबीए जैसे प्रोफेशनल कोर्सेज के लिए मारामारी है। हिंदुस्तान की एक बड़ी आबादी इतनी संपन्न नहीं है कि बच्चे की नौकरी के लिए लंबे समय तक इंतजार कर सके। यदि वैज्ञानिक शोध को कैरियर बनाने वाले युवाओं को नौकरी की गारंटी मिल जाए तो चंद दिनों में ही तस्वीर बदल सकता है। आज पूरे देश में योग्य अध्यापकों की कमी है। वैज्ञानिक शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों में गहरी हो चुकी राजनीति का भी खात्मा जरूरी है। संसाधनों और पैसों के अभाव को दूर करने के लिए सम्मिलित प्रयास किए जाने चाहिए। संसाधनों के लिहाज से केंद्रीय विश्वविद्यालयों में तो स्थिति फिर भी बेहतर है, लेकिन बाकी संस्थान संकट में हैं। विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देने के लिए नई तकनीक का विकास किया जाए और इन्हें पेटेंट कराया जाए। यह संस्थान बाद में पेटेंट अधिकार को उद्योग जगत को बेचें जिससे आने वाले पैसे से नई सुविधाओं का विकास हो। आज देश में प्रति 10 लाख भारतीय पर मात्र 112 ही वैज्ञानिक शोध में लगे हुए है, जो हमारी वास्तविकता को बताने के लिए काफी है।

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