Thursday, March 3, 2011

स्लम कॉलोनियों के 30 फीसद बच्चे ही जाते हैं स्कूल


राजधानी में रहने वाला हर तीसरा व्यक्ति स्लम कॉलोनी में रहता है। इन बस्तियों में रहने वाले 14 वर्ष के केवल 30 फीसद बच्चे ही स्कूल जाते है, जबकि 86 फीसद लोग गरीब और निरक्षर है। चौकाने वाले ये आंकड़े राजधानी की शहरी गरीब बस्तियों में काम कर रही गैर सरकारी संस्थाआशाने आज यहां आयोजित एक कार्यक्रम में जारी किये। आशा की संस्थापक तथा बाल रोग चिकित्सक किरण मार्टिन ने आज इंडिया हैविटेट में आस्ट्रेलिया के साथ मिल कर शिक्षा, स्वास्थ्य तथा अन्य बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराये जाने के कार्यक्रम के उद्घाटन अवसर पर स्लम कॉलोनियों की स्थित पर जारी आकंड़े के माध्यम से दावा किया कि राजधानी की स्लम कॉलोनियों में रहने वालें लोगों की स्थित बहुत बेहतर नहीं है। उन्होंने कहा कि आशा राजधानी की लगभग 50 स्लम कॉलोनियों के लगभग चार लाख निवासियों को बुनियादी सेवाएं उपलब्ध कराने के काम में जुटी है। उन्होंने कहा कि स्लम कॉलोनियों की तुलना में जिन स्लम कॉलोनियों में आशा द्वारा कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं वहां के 80-90 फीसद बच्चे स्कूल जाते हैं। यही स्थिति इन स्लम कॉलोनियों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सुविधाओं के मामले में भी है। उन्होंने कहा कि संस्था आस्ट्रेलिया के साथ मिलकर दिल्ली की स्लम कॉलोनियों में शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य बुनियादी सुविधायें उपलब्ध कराने के साथ-साथ शोध कार्य भी करेगी। उन्होंने कहा कि आशा की ओर से वर्ष 2008 से इन बस्तियों में चलाई जा रही योजनाओं के तहत अब तक 400 बच्चों को दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों के अलावा प्राइवेट कॉलेजों में एडमिशन मिल चुका है। 330 लड़कियां और 264 लड़के आशा के विभिन्न सेंटरों से अंग्रेजी व कम्प्यूटर की शिक्षा ले रहे हैं।

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