Friday, April 1, 2011

ऐसे तो नहीं मिल पाएगा शिक्षा का अधिकार


अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का कानून बनाकर सरकार खुश तो हो सकती है, लेकिन उसमें दिखावा ज्यादा हकीकत कम है। आलम यह है कि कानून को बने एक साल पूरा होने पर भी कोई राज्य इस कानून के प्रावधानों पर खरा नहीं उतरा है। एक भी ऐसा राज्य नहीं है कि जहां बच्चों को पढ़ाई की पूरी सामग्री मुफ्त उपलब्ध हो। जबकि खुद राजधानी दिल्ली में भी ऐसे उदाहरण हैं जहां बच्चों के लिए स्कूल तक नहीं है। इंतहा यह है कि सिर्फ 16 फीसदी लोगों को ही इस कानून की जानकारी है। केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष एक अप्रैल को 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का कानून लागू किया था। पहला साल बहुत उत्साहव‌र्द्धक नहीं है। सरकारी कागजी रिपोर्ट जो भी बताए, लेकिन जमीन पर काम करने वालों का तजुर्बा तो इसकी खराब तस्वीर ही सामने लगता है। बचपन बचाओ आंदोलन ने पिछले महीनों में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे नौ राज्यों से जो आंकड़ा इकट्ठा किया है वह हर किसी पर उंगली उठाता है। सिर्फ सरकारी स्कूलों की बात भी हो तो इन नौ राज्यों के 251 स्कूलों में से 24 फीसदी बच्चे ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। उत्तर प्रदेश में ड्राप आउट 30 फीसदी और बिहार में 25 फीसदी पाया गया। मुफ्त शिक्षा भी उपलब्ध नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 20 फीसदी स्कूल एडमिशन फीस वसूल रहे हैं जबकि 40 फीसदी स्कूलों मंे पढ़ाई की सामग्री के पैसे देने पड़ रहे हैं। ध्यान रहे कि कानून के अनुसार सभी चीजें मुफ्त देने का प्रावधान है। पठन सामग्री के बाबत बिहार की स्थिति सबसे खराब है। रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 80 फीसदी स्कूलों में किसी तरह की पाठ्य सामग्री मुफ्त उपलब्ध नहीं है। उत्तर प्रदेश के सिर्फ 33 फीसदी स्कूलों में सिर्फ पुस्तक उपलब्ध है, नोट बुक या यूनीफार्म नहीं। झारखंड की स्थिति थोड़ा अच्छी है जहां 75 फीसदी स्कूलों में पुस्तक दी जा रही है। कानून को असरदार बनाने के लिए स्कूल मैनेजमेंट कमेटी (एसएमसी) का प्रावधान किया था और उसे निगरानी की जिम्मेदारी दी गई थी। पर हालत यह है कि बिहार के 68 फीसदी और मध्य प्रदेश के 73 फीसदी स्कूलों में एसएमसी का गठन नहीं हुआ। गुरुवार को जारी होने वाली इस रिपोर्ट में सरकार को दिल्ली का हाल भी बता दिया गया है। दिल्ली के ही एक गांव बदरपुर खादर की स्थिति यह है कि इस गांव में अब तक कोई स्कूल ही नहीं है। जाहिर है कि फिलहाल दीपक तले ही अंधेरा है.


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