Saturday, April 9, 2011

अतार्किक निर्णय


पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड ने नकल न करने की एवज में हर परीक्षार्थी को पांच नंबर का कृपांक देने की घोषणा की है। यह तर्क न केवल हास्यास्पद है बल्कि बेतुका भी लगता है। परीक्षाओं में नकल रोकने का उद्देश्य यह होता है कि प्रमाणपत्र उन्हीं विद्यार्थियों को मिले जो ज्ञान और योग्यता रखते हों। परीक्षाओं में नकल रोकना शिक्षा बोर्ड की जिम्मेदारी होती है और इसके लिए उसे कड़ाई से जांच की छूट भी मिली होती है। बोर्ड यदि चाहे तो नकल रोकने के लिए पुलिस की भी मदद ले सकता है और इसके अतिरिक्त नकलची विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम रोकने से लेकर उन्हें निलंबित करने तक का अधिकार बोर्ड के पास होता है। इसके बावजूद विद्यार्थियों को ग्रेस मार्क देना यह दर्शाता है कि बोर्ड अपने स्तर पर नकल रोकने में नाकाम रहा है और अब विद्यार्थियों को ग्रेस मार्क का लालच देकर नकल रोकना चाह रहा है। इसके अतिरिक्त शिक्षा मंत्री के इस निर्णय से परीक्षा का औचित्य ही समाप्त हो जाता है। विद्यार्थियों को शिक्षा देने का उद्देश्य एक बेहतर समाज का निर्माण होता है और इस बेहतर समाज का मानक ही उसकी साक्षरता और शिक्षा दर होती है। यदि सभी को इसी प्रकार प्रमाण पत्र देकर शिक्षित घोषित किया जाता रहेगा तो समाज में शिक्षित तथा अशिक्षित का अंतर ही समाप्त हो जाएगा। चूंकि स्कूलों की पढ़ाई के स्तर का आकलन उसके विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम से किया जाता है इसलिए शिक्षा मंत्री उसके प्रति अधिक चिंतित दिखाई दे रहे हैं। गत वषरें में ऐसा देखने में आया था कि कुछ स्कूलों की कुछ कक्षाओं में सभी विद्यार्थीं फेल हो गए थे और कुछ स्कूलों के परीक्षा परिणाम अत्यंत खराब आए थे। ऐसा प्रतीत होता है कि उन खराब परिणाम वाले स्कूलों की छवि सुधारने के लिए शिक्षा मंत्री ने ग्रेस मार्क का प्रावधान कर दिया है। शिक्षा मंत्री को चाहिए कि वह स्कूलों की छवि सुधारने के चक्कर में समाज का भविष्य चौपट न करें और अपने निर्णय पर एक बार फिर से विचार करें।



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