Thursday, October 4, 2012

स्कूलों की बदहाली




 स्कूलों की बदहाली यह खेद की बात है कि सर्वोच्च न्यायालय को एक बार फिर केंद्र और राज्य सरकारों को यह आदेश देना पड़ा कि वे छह माह में सभी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं और विशेष रूप से पीने का पानी, शौचालय आदि की व्यवस्था करें। इस आदेश से यह स्पष्ट है कि केंद्र और राज्यों ने पिछले वर्ष सर्वोच्च न्यायालय की ओर से दिए गए इसी तरह के आदेश की अनदेखी की। देखना यह है कि अब उसके आदेश पर सही तरीके से अमल हो पाता है या नहीं? चूंकि देश के अनेक राज्यों में ऐसे स्कूलों की संख्या अच्छी-खासी है जहां बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं इसलिए अगले छह माह में शीर्ष अदालत के आदेश का पालन होना मुश्किल दिख रहा है, लेकिन यदि राज्य सरकारें और उनका प्रशासन ठान ले तो यह कोई दुष्कर कार्य भी नहीं। समस्या यह है कि स्कूली बच्चों को गुणवत्ता प्रधान शिक्षा उपलब्ध कराना राज्य सरकारों की प्राथमिकता में ही नजर नहीं आता। दुर्भाग्य से यह तब है जब स्कूलों में आवश्यक संसाधन उपलब्ध न कराना एक तरह से शिक्षा अधिकार कानून का उल्लंघन है। नि:संदेह यह मानकर नहीं चला जाना चाहिए कि जिन स्कूलों में पीने का पानी, शौचालय की व्यवस्था नहीं है वहां अन्य सुविधाएं उपलब्ध होंगी। सच्चाई यह है कि एक बड़ी संख्या में सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां ब्लैक बोर्ड और टाट-पट्टी भी नहीं है। इसी तरह कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जहां ढंग की इमारत नहीं है। यह तो जगजाहिर ही है कि तमाम स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं और जहां हैं भी वहां कोई यह देखने वाला नहीं है कि वे पठन-पाठन का अपना काम सही तरह कर रहे हैं या नहीं? परिणाम यह है कि तमाम स्कूलों में कक्षा चार और पांच में पढ़ने वाले बच्चे भी सामान्य जोड़-घटाव से अनभिज्ञ हैं और कुछ तो ऐसे हैं जो अपना नाम भी सही तरह लिख नहीं सकते। यह सारी दुर्दशा राज्य सरकारों के उदासीन रवैये के कारण है। राज्य सरकारें अपने अधिकारों को लेकर जितनी सतर्क रहती हैं उतना अपने कर्तव्य पालन के प्रति नहीं। वे ऐसे मामलों में भी अपनी प्रतिबद्धता का परिचय देने से इन्कार करती हैं जो भावी पीढ़ी के भविष्य और राष्ट्र के निर्माण से जुड़े हैं। सभी यह जानते और स्वीकार करते हैं कि समाज और राष्ट्र निर्माण का सबसे उचित तरीका बच्चों को सही तरह शिक्षित करना है, लेकिन व्यवहार रूप में ऐसा करने से बचा जाता है। राज्य सरकारें सरकारी स्कूलों को सभी संसाधनों से लैस करने के प्रति कितनी बेपरवाह हैं, इसका पता उस सर्वेक्षण से चलता है जो यह इंगित करता है कि शिक्षा अधिकार कानून के तहत आने वाले स्कूलों में केवल 44 प्रतिशत ऐसे हैं जहां छात्राओं के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था है। इस सर्वेक्षण का यह निष्कर्ष चकित करने वाला है कि एक बड़ी संख्या में छात्राओं को यह शिकायत है कि स्कूलों में उनके साथ दु‌र्व्यवहार किया जाता है। शिक्षा अधिकार कानून अपने आप में क्रांतिकारी है, लेकिन राज्य सरकारों के उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण स्थिति यह है कि तमाम लोगों को ऐसे किसी कानून के बारे में जानकारी ही नहीं है। यह तब है जब शिक्षा अधिकार कानून को लागू हुए करीब ढाई वर्ष हो चुके हैं। बेहतर हो कि राज्य सरकारें कम से कम शिक्षा के मामले में तो अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत और सक्रिय हों।

Dainik jagran National Edition , शिक्षा , 4-10-2012 Pej-8

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