संयुक्त राष्ट्र, प्रेट्र
: संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था ने कहा है कि भारत में नाबालिग
लड़कियों की शादी की दर में कमी आई है। लेकिन इस दिशा में अभी इतनी प्रगति
भी नहीं हुई कि इन लड़कियों को उनका शिक्षा का अधिकार मिले और आत्म-सुरक्षा
की गारंटी हो। बृहस्पतिवार
को प्रथम अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर संयुक्त राष्ट्र का मकसद
बाल विवाह को खत्म करना और इन लड़कियों को कुप्रथाओं का शिकार होने से बचाने
के लिए उन्हें हर हालत में शिक्षित करने का है। संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या
कोष (यूएनएफपीए) ने घोषणा की है कि अगले पांच सालों में दो करोड़ अमेरिकी
डॉलर का वह अतिरिक्त निवेश करेगी ताकि जिन बारह देशों में बाल विवाह
की कुप्रथा अधिक है वहां इसे न्यूनतम स्तर तक पहुंचाया जा सके। जिन देशों
में सबसे अधिक बाल विवाह का चलन हैं वह हैं ग्वाटेमाला, भारत, नागर और
जांबिया। यूएनएफपीए
की रिपोर्ट के अनुसार जब लड़के-लड़कियों की बालिग होते ही शादी ही
जाएगी, तो
बाल विवाह का चलन अपने आप खत्म हो जाएगा। इस रिपोर्ट में बताया
गया है कि भारत में वह 2000 से
2011 के
बीच भारत में 20 से
24 साल
की 47 फीसद
युवतियों की शादी कर दी जाती है। इनके लिए 18 बरस का होते ही रिश्ते
तलाशे जाते हैं। जिन लड़कियों की शादी बालिग होने से पहले ही शादी होती
हैं उनमें से 56 फीसद
लड़कियां ग्रामीण इलाकों और तीस फीसद ही शहरों में
रहती हैं। करीब 76 फीसद
लड़कियों को कोई शिक्षा नहीं दी जाती है। नाबालिग विवाहिताओं
में 75 फीसद
गरीब परिवारों से और 16 फीसद
ही अमीर परिवारों
से होती हैं। भारत में लगातार कराए गए तीन सर्वेक्षणों में पाया गया
कि 15 साल
से कम उम्र की लड़कियों की शादी में दोगुने से अधिक कमी आई है।
15 से
कम आयु की लड़कियों की शादी में तीस फीसद की कमी है जबकि 18 साल से
कम उम्र की लड़कियों में 13 फीसद
की कमी आई है। इस कमी को भी एक प्रगति के तौर पर देखा जा
सकता है। लेकिन अभी हालात इतने बेहतर नहीं हुए कि इन लड़कियों
की शिक्षा के पूर्ण अधिकार, यौन
अधिकार और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य और अधिकार पर वह खुद फैसले
लेने में सक्षम हों। 2006 के
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएचएफएस) के अनुसार भारतीय राज्यों जैसे
गोवा में बाल विवाह दर 11 फीसद, मणिपुर
में 13 फीसद
और केरल में 15 फीसद
है। इसके अलावा कई राज्य ऐसे भी हैं जहां 18 से कम उम्र में शादी
की जाने
वाली लड़कियों की संख्या हर से ज्यादा है। जैसे उत्तर प्रदेश में 53 फीसद, आंध्र
प्रदेश में 55 फीसद
और बिहार में 60 फीसद
है। रिपोर्ट के मुताबिक
अथक प्रयासों के बावजूद पूरे विश्व में ही बाल विवाह का
अस्तित्व अभी बाकी है। हालांकि पिछले दशक में बाल विवाह
में खासी कमी आई है। उल्लेखनीय है कि भारत में लड़कियों की
स्थिति बाल विवाह और दहेज जैसी कुप्रथाओं के चलते
काफी दयनीय रही है। बेटों की चाहत में देश की आबादी तो बढ़ी
ही है, कन्या
भ्रूण हत्याओं में भी इजाफा रहा है। कई परियोजनाएं चलाए जाने
के बावजूद इन सभी कुप्रथाओं पर अंकुश नहींलगाया जा सका। इन्हें सामाजिक
मान्यता होने के कारण कड़े कानून भी इन दुष्प्रथाओं को रोक नहीं पा रहे
हैं।
Dainik Jagran National Edition, 13-10-2012 शिक्षा PeJ-14
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