Wednesday, June 1, 2011

अब सरकार ने ही दिखाया जयराम को आईना


केंद्र में मंत्री बनने के बाद से ही वक्त-बेवक्त अपने बयानों को लेकर विवादों में रहने वाले जयराम रमेश अब सरकार को ज्यादा अखरने लगे हैं। इसीलिए आइआइटी की गुणवत्ता को लेकर उनके सवाल उठाने के बाद सरकार ने उनको शालीनता से आईना दिखाया है। सरकार का पक्ष रखने के लिए बने मंत्रियों के समूह की ओर से कपिल सिब्बल ने बिना उनका नाम लिए आइआइटी की बाबत कहा, बात तथ्यों पर होनी चाहिए, मान्यताओं पर नहीं। आइआइटी और आइआइएम के विश्वस्तरीय न होने और वहां हो रहे शोध पर जयराम रमेश (पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री-स्वतंत्र प्रभार) के सवाल उठाने के बाद कपिल सिब्बल गुरुवार को यहां पत्रकारों से रुबरू थे। सरकार का पक्ष रखने के लिए बने मंत्रियों के समूह की ओर से सिब्बल ने जयराम रमेश का नाम लिए बिना ही कहा कि मंत्री ने आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) व आइआइएम (भारतीय प्रबंध संस्थान) की योग्यता व गुणवत्ता पर सवाल उठाए हैं, लेकिन वे उससे सहमत नहीं हैं। वहां के शिक्षक विश्वस्तरीय हैं। सिब्बल ने कहा, यह सच है कि हमारे पास पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर उतने शोध करने वाले नहीं है, जिससे हम दुनिया में इस क्षेत्र में भारत की प्रभावी उपस्थिति दर्ज करा सकें, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमारी फैकल्टी विश्वस्तरीय नहीं है। उन्होंने जोड़ा कि आइआइटी के 25 प्रतिशत शिक्षक आइआइटी के ही छात्र रहे हैं। स्पष्ट है कि यदि वे 25 प्रतिशत छात्र विश्वस्तरीय रहे हैं तो शिक्षक भी वे विश्वस्तरीय ही होंगे। सिब्बल ने कहा कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दुनिया के वैज्ञानिक जगत में हो रहे बदलावों में अहम् नहीं साबित हो पा रहे हैं तो यह उनकी नहीं, बल्कि हमारे अपनी परिस्थितियों की कमी है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी क्षेत्र में दुनिया के स्तर (ग्लोबल इंडेक्स) पर आइआइटी 50 शीर्ष संस्थानों में शामिल हैं। उसमें आइआइटी-मुंबई का 21वां, आइआइटी-दिल्ली का 24वां, आइआइटी-कानपुर का 37वां और आइआइटी-मद्रास का 39वां स्थान है। इतना ही नहीं, इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हर साल देश भर में लगभग 1400 शोध होते हैं, जिनमें लगभग 1000 आइआइटी में होते हैं। लिहाजा इन संस्थानों के बारे में तथ्यों पर बात की जानी चाहिए, मान्यताओं पर नहीं। उन्होंने कहा कि दुनिया में स्तर का मापदंड अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं तय करती हैं। वे विदेशी फैकल्टी व विदेशी छात्रों को भी मानक बनाती हैं। निश्चित तौर पर भारत उस पर खरा नहीं उतरता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शोध में पिछड़ने की वजह से आइआइटी व आइआइएम कुछ कर ही नहीं रहे हैं.


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