Wednesday, June 15, 2011

इंटर में हिंदी में फेल हुए 42 हजार छात्र


क ख ग सीखकर शिक्षा की शुरुआत करने वाले छात्र भविष्य बनाने की ख्वाहिश में मातृभाषा की ही उपेक्षा कर रहे हैं। इसकी हकीकत यूपी बोर्ड इंटर परीक्षा परिणाम से पता लगती है। मातृभाषा हिंदी में लगभग 42 हजार छात्र फेल हुए हैं। यूपी बोर्ड के इंटरमीडिएट पाठ्यक्रम में वाणिज्य व विज्ञान वर्ग के परीक्षार्थियों को सामान्य हिंदी व कला वर्ग के परीक्षार्थियों को साहित्यिक हिंदी पढ़ाई जाती है। दोनों पाठ्यक्रम में गद्य व पद्य की पुस्तकों के कुछ पाठों का फर्क है। साहित्यिक हिंदी में 32 हजार 794 परीक्षार्थी फेल हुए तो सामान्य हिंदी में 9202 परीक्षार्थी। फेल छात्रों में विज्ञान वर्ग के मुकाबले कला वर्ग के छात्र अधिक हैं। इसका कारण छात्रों की यह मानसिकता मानी जा रही है कि हिंदी तो उनकी मातृभाषा है। वह सब ठीक कर लेंगे। इसके मुकाबले वे अंग्रेजी को कठिन मानकर अधिक समय देते हैं। इसके अतिरिक्त हिंदी की कुछ सहायक पुस्तकें कई सालों से बाजार से नदारद हैं। उत्तर प्रदेश में अन्य भारतीय भाषाओं की पढ़ाई का भी बुरा हाल है। आंकड़े गवाह हैं कि उडि़या, कन्नड़, तमिल, तेलगू व गुजराती में बोर्ड को एक भी छात्र नहीं मिला। नेपाली व मराठी में दो-दो छात्रों ने परीक्षा दी। बंगला में 28 छात्र पंजीकृत थे, लेकिन दो ने ही परीक्षा दी। इनके मुकाबले उर्दू में 44,703 परीक्षार्थी थे।


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