Thursday, May 5, 2011

नकल पर टिकी परीक्षाओं का हश्र


 एक मई को जब पूरा देश स्वेद बूंदों की अहमियत को याद कर रहा था, तब कुछ लोग श्रम और प्रतिभा का मजाक उड़ाकर माल काटने में जुटे हुए थे। ऑल इंडिया इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम यानी अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के पर्चे ऐन परीक्षा के पहले लीक हो गए। खबर तो यह है कि उत्तर प्रदेश में कुछ जगहों पर पर्चे छह-छह लाख रुपये तक में बिक रहे थे। केंद्र सरकार की अधीनस्थ संस्था केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी सीबीएसई पर इस प्रवेश परीक्षा को आयोजित कराने की जिम्मेदारी है, लेकिन प्रश्नपत्रों के लीक हो जाने से साफ है कि परिषद की व्यवस्था में खामियां तो हैं ही, उसके कर्मचारी भी बेईमान हैं। इसी साल मार्च से लेकर अब तक सीबीएसई की दो परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों के लीक होने से साफ है कि सीबीएसई की सफाई की जरूरत है। इसी साल मार्च में होने वाली दसवीं और बारहवीं की परीक्षा के जो प्रश्नपत्र अंडमान और निकोबार पहुंचे थे, उनकी सील टूटी हुई थी। यानी साफ था कि उन पर्चो के साथ छेड़छाड़ की गई थी। सीबीएसई में किस तरह दलालों और अधिकारियों की मिलीभगत है और उसमें समाज के रसूखदार लोग शामिल हैं, इसकी जानकारी सीबीएसई बोर्ड के दफ्तर में घुसते ही मिल जाएगी। कुछ साल पहले तक जब इंटरनेट का चलन नहीं था, तब सीबीएसई की परीक्षाओं के नतीजे अखबारों में प्रकाशित होते थे। उस समय सीबीएसई के पास नतीजों को प्रकाशित करने के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं होती थी। लिहाजा, नतीजे हासिल करने के लिए अखबारों तक को अधिकारियों की जेब भरनी पड़ती थी। जाहिर है कि जो अखबार पहले और ज्यादा जेब भर पाता था, कामयाबी उसे ही हाथ लगती थी। जेब भरना अखबारों की मजबूरी थी, क्योंकि परीक्षा के नतीजे नहीं छाप पाने की स्थिति में उन्हें अपनी सबसे बड़ी पूंजी यानी अपने पाठकों को खोने का खतरा रहता था। स्पष्ट नीति न होना सीबीएसई की ढिलाई नहीं थी, बल्कि ऐसा जानबूझकर किया गया था, ताकि कमाई की राह बनी रहे। सीबीएसई में कितना भ्रष्टाचार है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कई स्कूलों को बनाने में मानकों का ध्यान नहीं रखा गया है, लेकिन उन्हें स्कूल चलाने की मान्यता दे दी गई है। सीबीएसई के मानकों के मुताबिक स्कूलों में बेसमेंट नहीं होना चाहिए, बच्चों के सुरक्षा के लिहाज से ऐसा होना जरूरी है। लेकिन गुड़गांव में एक नामी स्कूल बेसमेंट होने के बाद इसलिए चल रहा है, क्योंकि उसके संचालकों ने सीबीएसई अधिकारियों को मोटी रकम देकर पढ़ाई जारी रखने की मान्यता हासिल कर ली है। फरीदाबाद के एक नामी स्कूल को किसी बड़ी कंपनी ने खरीद लिया, जबकि स्कूल नियमावली के मुताबिक सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूल की खरीद-बिक्री नहीं हो सकती। हां, एक तरह के सामाजिक कार्यो वाली संस्था किसी संस्था से स्कूल न चला पाने की स्थिति में स्कूल के संचालन की जिम्मेदारी हासिल कर सकती है, लेकिन फरीदाबाद का वह स्कूल करोड़ों में बिका है। मजे की बात है कि यह जानकारी आम लोगों तक में चर्चा में है। लेकिन सीबीएसई के कानों पर जूं नहीं रेंगती। उस स्कूल में नौंवी से लेकर बारहवीं तक की मान्यता नहीं है, लेकिन मोटी रकम पर हर साल वहां छात्रों का दाखिला होता है और उन छात्रों को दसवीं-बारहवीं की परीक्षाएं कहीं और से दिलवाई जाती हैं। जब राजधानी दिल्ली की नाक के नीचे ऐसा हो रहा है तो देश के सुदूरवर्ती इलाकों में जाहिर बदइंतजामियों का अंदाजा लगाना आसान हो जाता है। जाहिर है, जिस संस्था में भ्रष्टाचारी अधिकारियों की बन आई हो, वहां से पाक-पवित्र परीक्षाओं की उम्मीद कैसे की जा सकती है। जिस तरह से शिक्षा व्यवस्था खासतौर पर निजी हाथों में समाजसेवा से ज्यादा कमाई का साधन बनी है, उद्योग का दर्जा हासिल की है, उसमें सीबीएसई और दूसरे विभागों के अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण का भी योगदान है। सीबीएसई के अंदर जारी भ्रष्टाचार की ये कुछ बानगी हैं। परीक्षाओं की जरूरत पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। दसवीं से बोर्ड की परीक्षाएं खत्म होनी शुरू भी हो गई हैं। कुछ शिक्षाशास्त्री इसके पक्ष में हैं तो कुछ इसके विरोध में। मौजूदा परीक्षा व्यस्था की आलोचना इसलिए की जाती है, क्योंकि वह समझ से ज्यादा रटंत की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर हजारों में से कौन बेहतर है और कौन कमतर, इसकी जांच का तरीका क्या हो। आधारभूत ज्ञान को जांचने का तरीका क्या हो, इसे लेकर दुनियाभर के शिक्षाशास्त्री अभी तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाएं हैं। ऐसी हालत में मौजूदा ढर्रे की परीक्षाओं की जरूरत बनी रहेगी। चूंकि राज्यों के विभागों और संस्थानों की साख की तुलना में केंद्र सरकार के संस्थानों की साख ज्यादा है, लिहाजा उन पर भरोसा किया जाता रहा है। अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के आयोजन की जिम्मेदारी सीबीएसई को इस साख के लिए ही दी गई, लेकिन वह अपनी साख को बचाने में कामयाब नहीं रही है। भ्रष्ट आचरण और शिक्षा को उद्योग बनाते जाने की प्रवृत्ति के चलते अधिकाधिकों को परीक्षाओं में भी कमाई नजर आने लगी है और इस पवित्र पेशे को भी वे बदहाल बनाने पर जुटे हुए हैं। चूंकि उदारीकरण के दौर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की मांग बढ़ गई है, लिहाजा प्रवेशार्थियों का दबाव भी बढ़ा है। कोचिंग केंद्रों की बाढ़ भी इसी दबाव और दबाव के बीच कमाई की उम्मीद का नतीजा है। अब कोचिंग सेंटरों में अधिक से अधिक छात्र बुलाने की प्रतिद्वंद्विता भी बढ़ी है, क्योंकि कोचिंग कोई सस्ता सौदा नहीं रहा। कोचिंग संस्थानों की साख तभी बढ़ सकती है, जब उनके यहां प्रवेश लेने वाले अधिकाधिक छात्र प्रवेश परीक्षा में कामयाब हों। इसके लिए कोचिंग संस्थान प्रश्नपत्र बनाने वाले संभावित अध्यापकों को भी अपने यहां बुलाते हैं। जब इस पर भी बात नहीं बनती तो वे पर्चे लीक कराने की कोशिश भी करते हैं और इसमें साथ देते हैं सीबीएसई के बेईमान कर्मचारी और अधिकारी। एक मई को होने वाली अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के प्रश्न पत्र लीक कांड की जांच कर रही उत्तर प्रदेश की एसटीएफ के एसपी विजय प्रकाश का कहना है कि उत्तर प्रदेश में छह-छह लाख में पर्चे बेचे जा रहे थे। इतनी मोटी रकम देकर जाहिर है कि प्रश्नपत्र खरीदने वाले छात्र कम ही होंगे। इससे साफ है कि कोचिंग सेंटरों के संचालकों का हाथ इस लीक में था और वे ही इसे खरीद रहे होंगे। इन सेंटरों की पहुंच और उनके साथ फलते-फूलते इस बेईमान धंधे का नेटवर्क गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश तक में हैं। उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने एक व्यक्ति को इस सिलसिले में गिरफ्तार भी किया है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि इस नेटवर्क को ही तोड़ा जाए और उसमें शामिल सीबीएसई के अधिकारियों तक को बेनकाब किया जाए। इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों और नेटवर्क के रसूखदार लोगों को कड़ी सजा नहीं दी जाएगी तो परीक्षा की पवित्रता को काली कमाई से गंदा करने की कोशिशें जारी रहेंगी। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं).

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