Thursday, May 5, 2011

शिक्षा की खरीद-फरोख्त


शिक्षा के बाजारीकरण पर लेखक की टिप्पणी
देश के प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेजों की संयुक्त प्रवेश परीक्षा एआइईईई का प्रश्नपत्र लीक होने से लगभग 14 लाख परीक्षार्थियों को गहरा सदमा लगा है। लखनऊ में यह प्रश्नपत्र छह लाख रुपये में बिक रहा था। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि प्रश्नपत्र की खरीद-फरोख्त ने शिक्षा को मजाक बना कर रख दिया है। प्रश्नपत्र लीक होने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी महत्वपूर्ण परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होते रहे हैं। भारत में कोचिंग इंस्टीट्यूट शिक्षा माफिया का रूप ले चुके हैं। पेपर लीक कराने में सबसे बड़ा हाथ इन्हीं इंस्टीट्यूटों का मिल रहा है। शिक्षा में भ्रष्टाचार कॉलेजों में प्रवेश में भी देखा जा सकता है। इंजीनियरिंग कॉलेज व विश्वविद्यालय शिक्षा को बेचने के लिए छात्रों को तरह-तरह के प्रलोभन दे रहे हैं। फिर भी, अधिकांश कॉलेजों की सीटें पूरी नहीं भर रही हैं। कुछ समय पहले तक विद्यार्थी इंजीनियरिंग में प्रवेश लेने के लिए कॉलेजों के पीछे भागते थे, लेकिन आजकल कॉलेज प्रवेश देने के लिए विद्यार्थियों के पीछे भागने लगे हैं। दरअसल, निजीकरण के इस दौर में पूरे देश में इंजीनियरिंग कॉलेजों की बाढ़ आ गई है। लगभग सभी प्रदेशों में धड़ाधड़ नए इंजीनियरिंग व मैनेजमेंट कॉलेज खुल रहे हैं। उत्तर प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में अनेक सीटें खाली रह गई हैं। कुछ नए इंजीनियरिंग कॉलेज तो विद्यार्थी न मिलने के कारण बंद होने के कगार पर हैं। सवाल यह है कि ऐसी स्थिति मे सीटें बढ़ाने का क्या औचित्य है? गौरतलब है कि इंजीनियरिंग कॉलेजों को एआइसीटीई संस्था मान्यता देती है। इसके साथ ही ये कालेज अपने क्षेत्र के प्राविधिक विश्वविद्यालयों से संबद्धता हासिल करते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि एआइसीटीई और संबंधित विश्वविद्यालय किसी भौगोलिक क्षेत्र में इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या पर ध्यान नहीं देते हैं। यही कारण है कि देश के अनेक शहरों में निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या 40-45 तक पहुंच गई है। यह प्रतिस्पर्धा शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए नहीं है बल्कि विद्यार्थियों को हड़पने के लिए है। यह हाल केवल इंजीनियरिंग पाठयक्रमों का ही नहीं है। निजी क्षेत्र में खुले एमबीए और एमसीए जैसे अन्य पाठयक्रम भी इसी ढर्रे पर चल रहे हैं। निजी क्षेत्र में अधिक कॉलेज होने के फलस्वरूप विद्यार्थी न मिलने के कारण ये संस्थान अपने यहां पहले से अध्ययनरत विद्यार्थियों से ही सारा मुनाफा निकालने के प्रयास में रहते हैं। ऐसे में विद्यार्थियों का शोषण और बढ़ जाता है। अगर कोई विद्यार्थी किसी विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में बैठता है तो इन पाठ्यक्रमों को संचालित करने वाले निजी कॉलेज जुगाड़ संस्कृति के माध्यम से विश्वविद्यालय से विद्यार्थी का पता मालूम कर लेते हैं और फिर शुरू होता है उस विद्यार्थी से संपर्क साधने का सिलसिला। विद्यार्थी से संपर्क साधने के इस अभियान के अंतर्गत विद्यार्थी को प्रवेश देने के लिए प्रलोभक पत्र भेजा जाता है, उसके मोबाइल पर एसएमएस भेजे जाते हैं और मोबाइल के जरिए उनसे वार्तालाप भी किया जाता है। यह सिलसिला तब तक चलता रहता है जब तक कि विद्यार्थी झल्लाकर उसे परेशान न करने की चेतावनी न दे दे। एक दशक पहले तक अगर किसी गांव या कस्बे से इंजीनियरिंग में किसी विद्यार्थी का चयन हो जाता था तो चर्चा का विषय बन जाता था। ऐसे विद्यार्थियों को एक अलग ही सम्मान प्राप्त होता था। लेकिन निजीकरण के बाद इंजीनियरिंग जैसे पाठयक्रमों की साख को बट्टा लग गया है। दुख और आ:र्य की बात यह है कि ऐसे पाठयरमों के लिए लगभग सभी प्रकाशक कुंजी की तरह की पुस्तकें प्रकाशित कर रहे हैं और अधिकांश विद्यार्थी इन्हीं पुस्तकों को पढ़कर पाठयक्रम पूर्ण कर रहे हैं। इस वातावरण में शिक्षा की गुणवत्ता की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। सभी का मुख्य उददेश्य किसी भी तरह मुनाफा कमाना है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं).

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