Sunday, May 1, 2011

आधा दर्जन राज्यों में स्कूली शिक्षा खतरे में


देश में स्कूली पढ़ाई का एजेंडा विद्यालय भवनों व छात्रों की कमी से नहीं, बल्कि शिक्षकों की कमी के कारण पटरी से उतरने वाला है। एक तरफ शिक्षा का अधिकार कानून के अमल के लिए पांच लाख से अधिक नए शिक्षकों की दरकार है तो दूसरी तरफ पूरे देश में पहले से ही नौ लाख शिक्षक कम हैं। इस मामले में सबसे बदतर स्थिति उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, राजस्थान और उड़ीसा की है। जहां लाखों शिक्षकों के पद अर्से से खाली पड़े हैं। उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार है। मायावती मुख्यमंत्री हैं। पार्टी शुरू से गरीबों, वंचितों, दबे-कुचलों की हिमायती रही है। अब भी इन्हीं तबकों की पढ़ाई की राह मुश्किल है, लेकिन उत्तर प्रदेश में ही सबसे ज्यादा (एक लाख 88 हजार) शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। उसमें भी एक लाख 38 हजार के लिए सीधे राज्य सरकार जिम्मेदार है। बिहार के लिए चर्चा आम है कि वहां नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में विकास की रफ्तार तेज हुई है। इसीलिए उनकी फिर से सत्ता में वापसी हुई है। शिक्षा की स्थिति भी सुधरी है। इस सुधार के बावजूद वहां डेढ़ लाख से अधिक शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। पश्चिम बंगाल में 34 साल से वाममोर्चा की सरकार है। वाममोर्चा सर्वहारा वर्ग की लड़ाई लड़ने की बात करता रहा है, लेकिन बुनियादी पढ़ाई की राह आसान करने के लिए शिक्षकों के खाली पद भरना उसकी प्राथमिकता में नहीं रहा। इसी तरह झारखंड की भाजपा गठबंधन सरकार और हरियाणा व राजस्थान की कांग्रेसी सरकारें भी शिक्षकों के खाली पड़े पदों को भरने में उतनी ही उदासीन हैं, जैसे दूसरे राज्यों की गैर-कांग्रेसी सरकारें। राज्य छोटा भले सही, लेकिन केरल में स्कूली शिक्षकों के सिर्फ 12 पद रिक्त हैं। जबकि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में पांच हजार से अधिक, पंजाब में 14 हजार और दिल्ली में लगभग आठ हजार स्कूली शिक्षकों के पद नहीं भरे जा सके हैं। उधर, केंद्र सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करती है। शिक्षा का अधिकार कानून में उसका प्रावधान भी कर दिया गया है। फिर भी जल्द कुछ बदलने के आसार नहीं हैं। वजह यह कि केंद्र व राज्य सरकारें अपने ही ढर्रे पर हैं। नतीजा यह है कि देश में स्कूली शिक्षकों के 47 लाख स्वीकृत पदों में से नौ लाख पद खाली पड़े हैं। उसमें छह लाख पद तो राज्य सरकारों के कोटे के हैं। तीन लाख पद सर्वशिक्षा अभियान के तहत भरे जाने हैं। अभियान में केंद्र व राज्यों के बीच खर्च का बंटवारा 65:35 के अनुपात का है।


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