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नई दिल्ली (एजेंसी)। सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि देश के सरकारी और निजी शिक्षा संस्थानों को बच्चों को गुणात्मक शिक्षा प्रदान करनी चाहिए और इसके लिए शिक्षकों की नियुक्ति की पात्रता की शतरे का सख्ती से पालन होना चाहिए। न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति एफएम इब्राहिम कलीफुल्ला की खंडपीठ ने अनिवार्य शैक्षणिक योग्यता नहीं रखने के कारण एक शिक्षक की बर्खास्तगी से जुड़े मामले में यह टिप्पणी की। इस शिक्षक के पास अनिवार्य योग्यता नहीं थी। न्यायाधीशों ने कहा कि लोकतंत्र की जिंदगी शिक्षा के उच्च स्तर पर निर्भर करती है, इसलिए उच्च स्तर को हर कीमत पर बनाए रखना चाहिए। न्यायाधीशों ने कहा कि यह स्वीकार्य तथ्य है कि लोकतंत्र त्रुटिहीन नहीं हो सकता है, लेकिन हम उचित शिक्षा प्रदान करके इस कमी को न्यूनतम कर सकते हैं। लोकतंत्र की जिंदगी उच्च स्तर की सामान्य, व्यावसायिक और पेशेवेर शिक्षा पर ही निर्भर रहती है। न्यायालय ने कहा कि शिक्षा और विशेष रूप से प्रारंभिक और बुनियादी शिक्षा तो गुणात्मक होनी चाहिए और इसके लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की जरूरत होगी। विशेषज्ञ संस्थाओं से परामर्श के बाद ही विधायिका ने अपने विवेक से स्कूल में विशेष तरीके से शिक्षण के लिए पात्रता निर्धारित की है। इसलिए पात्रता की कसौटी का सख्ती से पालन जरूरी है और इसके अनदेखी करके की गई किसी भी नियुक्ति को अवैध करार दिया जाएगा। न्यायाधीशों ने कहा कि समाज के उपेक्षित और कमजोर वर्ग के बच्चों को संतोषप्रद स्तर की नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के प्रावधान पर अमल की जिम्मेदारी सिर्फ सरकारी सहयोग से चलने वाले स्कूलों की ही नहीं बल्कि सरकारी सहायता के बगैर चलने वाले स्कूलों की भी है। अनिवार्य शैक्षणिक योग्यता नहीं रखने के कारण एक शिक्षक की बर्खा स्तगी से जुड़े मामले में शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की
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