ठ्ठ जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में से एक भी भारत में नहीं है। सरकार चाहती है कि अगले पांच वर्षो में इन दो सौ में कम से कम पांच भारत में हों। एकतरफ तो सरकार के ख्याल इतने ऊंचे हैं, दूसरी तरफ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और संसाधनों के विस्तार की बड़ी चुनौती उसके सामने है। बावजूद इसके शिक्षा सुधार की गाड़ी पर धन की कमी का ब्रेक लग सकता है। संकेत हैं कि सरकार अगली पंचवर्षीय योजना के लिए इसके बजट में जरूरत से कम इजाफा करने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक, अगली पंचवर्षीय योजना (2012-2017) में उच्च व स्कूली शिक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने छह लाख करोड़ रुपये का मसौदा तैयार किया था। उसमें से शिक्षा का अधिकार कानून के तहत छह से 14 साल तक के बच्चों को अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा और संसाधनों आदि की जरूरतें पूरी करने पर 3.5 लाख करोड़ रुपये खर्च होने थे। उच्च शिक्षा में नए केंद्रीय विश्वविद्यालयों, नए आइआइटी, एनआइटी, आइआइएम के विस्तार और अन्य जरूरतों के लिए 2.5 लाख करोड़ रुपये की दरकार थी। सूत्रों की मानें तो मंत्रालय की इस मांग के विपरीत स्कूली शिक्षा में लगभग 2.5 लाख करोड़ और उच्च शिक्षा में लगभग 1.25 लाख करोड़ रुपये ही मिलने के संकेत हैं। इस पर अंतिम फैसला योजना आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में शनिवार को होने जा रही पूर्ण योजना आयोग की बैठक में होगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का मानना है कि शिक्षा की जो चुनौतियां 11वीं योजना में थीं, वे अब भी हैं। शिक्षा सुधार एवं विस्तार का जो काम शुरू हुआ है, उसे अगले पांच सालों में मुकाम तक पहंुचाना है। लेकिन, 11वीं योजना की तुलना में 12वीं योजना में सिर्फ ढाई प्रतिशत वृद्धि के ही संकेत हैं, जिनसे वह पूरा होने वाला नहीं है। 11वीं योजना में शिक्षा के लिए 1,77,538 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। उच्च शिक्षा के मामले में तो 11वीं योजना के बजट में दसवीं योजना से लगभग नौ गुना वृद्धि की गई थी।
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