ठ्ठराजकेश्वर सिंह, नई
दिल्ली तमाम
कोशिशों के बाद स्कूली पढ़ाई तो काफी हद तक पटरी पर आ गई है, लेकिन गुणवत्ता
का सवाल अब भी सब पर भारी है। ऐसे में सरकार शुरुआती पढ़ाई से ही अच्छी
बुनियाद के मद्देनजर प्री प्राइमरी शिक्षा का भी इंतजाम अपने हाथों में
रखने की कवायद कर रही है। मसौदा भी तैयार है, लेकिन संकेत हैं कि
इसमें धन
की कमी आड़े आ सकती है। सरकार ने अगले पांच साल के लिए शिक्षा
की जो कार्ययोजना तैयार की है, प्री प्राइमरी
स्कूल की पढ़ाई भी उसका हिस्सा है। लेकिन, धन का फैसला अभी तक नहीं
हो पाया है। सूत्रों के मुताबिक मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूली शिक्षा
विभाग का आकलन है कि इस पर अमल हुआ तो अगले पांच साल में 65 हजार करोड़
रुपये का खर्च आएगा। योजना आयोग और वित्त मंत्रालय ने अभी इस पर रजामंदी
नहीं दी है। सूत्रों का कहना है कि अगली पंचवर्षीय योजना के लिए उच्च
और स्कूली शिक्षा के प्रस्तावित खर्च में जिस तरह कमी की गई है, उससे प्री
प्राइमरी के लिए पर्याप्त धन मिलने के संकेत फिलहाल नहीं हैं। मानव
संसाधन विकास मंत्रालय इस अहम बिंदु को संबंधित पक्षकारों के सामने उठा
चुका है, लेकिन
अभी तक सकारात्मक संकेत नहीं मिले हैं। उल्लेखनीय है कि अभी
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय समेकित बाल विकास योजना (आइसीडीएस) के तहत
आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिये छह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए प्री प्राइमरी
शिक्षा की योजना चला रहा है, लेकिन वह कारगर नहीं साबित हो रही है। सरकार
ने 11वीं
योजना (2007-2012)
में भी प्री प्राइमरी शिक्षा को महिला एवं
बाल विकास मंत्रालय के बजाय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत संचालित करने
का प्रयास किया था। लेकिन, तब
बाल विकास मंत्रालय उसे छोड़ने और मानव संसाधन विकास
मंत्रालय अपनाने को राजी नहीं था। इस बार फिर यह प्रयास हो रहा
है, लेकिन
उसके लिए पर्याप्त बजट का सवाल अब भी बना हुआ है। बिना बजट तमाम
लक्ष्य लटक सकते हैं।
दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण, पेज 3 , 25-09-2012 f’k{kk
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