राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सरकार के ‘शिक्षा का हक अभियान’ की सराहना करते हुए कहा है कि शिक्षा का अधिकार कानून पर स्कूलों से लेकर केंद्र के स्तर तक जवाबदेही तय होनी चाहिए। मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून-2009 को लेकर निगरानी की जिम्मेदारी बाल आयोग की है। इस जिम्मेदारी को मिले दो साल पूरा होने के मौके पर आयोग ने इस संदर्भ में किए गए अब तक के कायरें के साथ ही भविष्य की योजनाओं का खाका पेश किया। बाल आयोग की अध्यक्ष शांता सिन्हा ने एक बयान में कहा, ‘शिक्षा का अधिकार कानून को लेकर अब भी कई चुनौतियां हैं, जिन पर आगे काम किया जाएगा। इनमें शिकायत निवारण पण्राली स्थापित करने के साथ ही स्कूल से लेकर राज्य एवं केंद्र सरकार के स्तर तक जवाबदेही जरूरी है।’ उन्होंने कहा, ‘बाल श्रम विरोधी कानून एवं राष्ट्रीय बाल श्रम कार्यक्र म को शिक्षा के अधिकार कानून के अनुरूप बनाना भी जरूरी है। स्कूलों एवं शिक्षण संस्थानों में शारीरिक दंड देने पर भी पांबदी लगानी होगी। इस तरह के प्रावधान किए जाने चाहिए जिससे बेहसारा बच्चों और बाल श्रमिकों को शिक्षा के अधिकार के तहत सीधा फायदा मिल सके।’
शांता सिन्हा ने कहा, ‘हम मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से शुरू किए गए शिक्षा का हक अभियान की सराहना करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि यह ऐसा माहौल तैयार करेगा जिसमें शिक्षा को लेकर खड़ी हुई सभी चुनौतियों से निपटा जा सकेगा।’ ‘शिक्षा का हक अभियान’ की शुरुआत लोगों, विशेषत: युवाओं के बीच शिक्षा को लेकर जागरूकता फैलाने के मकसद से की गई है। इस अभियान का एक लक्ष्य शिक्षा का अधिकार कानून को लेकर लोगों के बीच जागरूकता का प्रसार करना भी है। शिक्षा का अधिकार कानून 2010 में अमल में आया था। आयोग का कहना है कि अपनी ‘सोशल ऑडिट’ की प्रक्रि या के तहत उसने बीते दो वर्षों में 12 राज्यों के 439 वार्ड और 700 से अधिक स्कूलों को कवर किया। बाल आयोग ने कहा, ‘बीते दो वर्षों में शिक्षा के अधिकार को लेकर 11 राज्यों में जन सुनवाई हुई। इस दौरान लगभग 2,500 मामलों की सुनवाई की गई। मामलों के पंजीकरण और इसे आयोग के संज्ञान में लाने में 100 से अधिक गैर सरकारी संगठनों ने मदद की।’ आयोग ने कहा कि ग्राम पंचायतों और शहरी निकायों को भी शिक्षा के अधिकार कानून के क्रि यान्वयन की जिम्मेदारी से जोड़ना होगा, जिससे यह कानून व्यापक रूप से प्रभावी हो सकेगा।
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