सुप्रीमकोर्ट ने 6 से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा के मौलिक अधिकार पर अपनी मुहर लगा दी है। अब गरीब बच्चों का हाईफाई निजी स्कूलों में पढ़ाई का सपना पूरा होगा। देश भर में सरकारी व गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित होंगी। शीर्ष अदालत ने शिक्षा के कानून को संविधान सम्मत ठहराते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा, शिक्षा का कानून 2009 संविधान सम्मत है। मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या व न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने शिक्षा के कानून अधिकार को चुनौती देने वाली निजी स्कूलों की याचिका पर फैसले में कहा कि यह कानून सरकारी व सरकार द्वारा नियंत्रित संस्थाओं के स्कूलों, गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों और सरकारी सहायता या अनुदान प्राप्त करने वाले अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू होगा। गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थानों पर यह लागू नहीं होगा। कोर्ट ने कहा, कानून की धारा 12(1)(सी) और 18(3) संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को मिले अधिकार का उल्लंघन करती है। हालांकि न्यायाधीश केएस राधाकृष्णन ने अलग से फैसला सुनाते हुए कहा है गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों पर भी 25 फीसदी गरीब बच्चों को मुफ्त में प्रवेश देने का कानून लागू नहीं होगा। न्यायमूर्ति राधाकृष्णन का फैसला अल्पमत का है, अत: यह प्रभावी नहीं होगा। दो न्यायाधीशों के बहुमत काफैसला ही प्रभावी होगा। यह फैसला आज से यानि 12 अप्रैल से लागू होगा। जो बच्चे पहले ही गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक स्कूलों में प्रवेश ले चुके हैं, उनके प्रवेश के मामलों में कोई रुकावट नही आएगी। मालूम हो कि सरकार ने संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 21 ए जोड़ा था जो कि 6 वर्ष से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का मौलिक अधिकार देता है। अधिकार को लागू करने के लिए सरकार मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 लेकर आई। यह एक अप्रैल 2010 से लागू हो गया। इसमें कहा गया है कि प्रत्येक स्कूल को पड़ोस में रहने वाले बच्चों को अपने यहां प्रवेश देना होगा। और प्रत्येक स्कूल 25 फीसदी सीटें गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित करेगा। इन्हें मुफ्त में शिक्षा दी जाएगी और उनसे किसी तरह की फीस नहीं ली जाएगी। निजी स्कूलों ने इस कानून को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी। सोसाइटी फार अनएडेड स्कूल आफ राजस्थान आदि की ओर से दाखिल याचिकाओं का निपटारा करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। निजी स्कूलों की दलील थी कि उन्हें संविधान में रोजगार का मौलिक अधिकार प्राप्त है और सरकार उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। यह भी दलील थी कि वे जब सरकार से कोई सहायता नहीं लेते तो फिर सरकार उन पर मुफ्त शिक्षा देने का दबाव कैसे डाल सकती है। सुप्रीमकोर्ट ने दलीलें खारिज करते हुए कहा कि यह सही है कि संविधान में सभी को मनपसंद रोजगार या व्यवसाय करने और उसके प्रबंधन का मौलिक अधिकार प्राप्त है, लेकिन सरकार कानून बना कर इस अधिकार पर कुछ नियंत्रण लगा सकती है। इसलिए शिक्षा का अधिकार कानून को असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता। पीठ ने कहा है कि शिक्षा का अधिकार कानून बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में आने वाली बाधाएं दूर करने के उद्देश्य से लाया गया है।
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