सरकार कुछ भी कहे, लेकिन शिक्षा के मामले में सुनहरे सपने बेचने में उसका कोई सानी नहीं है। खासकर, बुनियादी शिक्षा के मामले में। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की बात छोडि़ए, रेल मंत्रालय तो उससे भी दो कदम आगे निकल गया है। वह भी उत्तर प्रदेश में, जहां से खुद संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी चुनकर आते हैं। प्रदेश में रेलवे की जमीन पर दर्जन भर से अधिक केंद्रीय विद्यालय खुलने थे। दो साल पुराने इस फैसले को भी अफसरों ने ठेंगा दिया। संप्रग-दो में ही जनवरी, 2010 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय और रेल मंत्रालय ने देश भर में रेलवे की जमीन पर 50 केंद्रीय विद्यालयों को खोलने के लिए एक सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए थे। इन विद्यालयों में से 13 अकेले उत्तर प्रदेश में खुलने थे, जिसमें सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली स्थित कोच फैक्ट्री भी शामिल है। सुलतानपुर, प्रतापगढ़, टूंडला (फिरोजाबाद) और झांसी भी इन चयनित स्थानों में शामिल है, जहां से कांग्रेस के ही सांसद हैं। इसके अलावा लखनऊ, आगरा, सीतापुर, मऊ, वाराणसी सूबेदारगंज (इलाहाबाद), मैलानी और फतेहगढ़ में भी केंद्रीय विद्यालय खुलने थे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत केंद्रीय विद्यालय संगठन की तरफ से खुलने वाले इन 13 विद्यालयों में से 11 के लिए संबंधित मंडलों के रेल प्रबंधकों या फिर दूसरे जिम्मेदार अधिकारियों ने प्रस्ताव ही नहीं भेजा। अलबत्ता, मऊ व वाराणसी में खुलने वाले केंद्रीय विद्यालयों के लिए वाराणसी रेल मंडल से प्रस्ताव मिले हैं। उसमें भी मऊ के प्रस्ताव में खामियां हैं, जबकि वाराणसी के लिए मिला प्रस्ताव विचाराधीन है। बिहार में दानापुर रेल मंडल में झाझा और समस्तीपुर रेल मंडल में नरकटियागंज में भी केंद्रीय विद्यालय खुलने थे। यहां से प्रस्ताव तो मिला है, लेकिन उसमें कई कमियां हैं। मालूम हो कि एमओयू के मुताबिक जमीन रेलवे को मुहैया करानी थी, जबकि विद्यालय खोलने व संचालित करने का जिम्मा केंद्रीय विद्यालय संगठन का था। इतना ही नहीं, एमओयू के तहत रेलवे को कुल 50 केंद्रीय विद्यालयों के लिए जमीन उपलब्ध करानी थी। दो साल बाद भी वह मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सिर्फ 43 स्थानों को ही चिह्नित करने की जानकारी दे पाया है। उनमें भी जम्मू-कश्मीर में जम्मू तवी, महाराष्ट्र में बल्लारशाह, भुसावल, दौड़, राजस्थान में जोधपुर व बीजीकेटी डीजल शेड समेत बेंगलूर और चेन्नई क्षेत्र से आधा दर्जन से अधिक चिह्नित स्थानों पर केंद्रीय विद्यालय खोलने के लिए अब तक प्रस्ताव नहीं मिले हैं। इसलिए यह मामला अभी तक अटका हुआ है। दोनों संबंधित मंत्रालयों में छाई सुस्ती के कारण यह परियोजना अब दम तोड़ती नजर आ रही है। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में सरकार क्या कदम उठाती है।
No comments:
Post a Comment