उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश प्रति बच्चे की पढ़ाई पर राष्ट्रीय औसत से तीन गुना से ज्यादा खर्च कर रहे हैं। उत्तराखंड में एक बच्चे की शिक्षा पर औसतन 16681 रुपये खर्च किया जा रहा है। शिक्षा का अधिकार कानून में पब्लिक स्कूलों में 25 फीसद सीटों पर वंचित वर्गो के बच्चों के दाखिले से सरकारी खजाने पर तकरीबन 41 करोड़ का खर्च बढ़ गया है। इसकी भरपाई के लिए राज्य ने केंद्र का दरवाजा खटखटाया है। यह मामला अब केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पाले में है। देश में एक छात्र पर औसतन 5207 रुपये सालाना खर्च हो रहे हैं, जबकि उत्तराखंड में यह राशि 16681 रुपये है। यह खर्च अन्य राज्यों में सबसे ज्यादा है। हिमाचल में भी यह राशि 16 हजार से ज्यादा है, लेकिन उत्तराखंड की तुलना में कुछ कम है। उत्तराखंड के 80 फीसद से ज्यादा पर्वतीय क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व कम है। ऐसे में स्कूल खोलने और प्राइमरी स्तर पर न्यूनतम दो और अपर प्राइमरी में न्यूनतम तीन शिक्षकों की तैनाती के मानक के मुताबिक सरकारी शिक्षा पर खर्च का बोझ बढ़ा है। अपर प्राइमरी स्तर पर व्यायाम, संगीत और कला के लिए पार्टटाइम शिक्षक रखे जाने हैं। इससे खर्च कम होने के बजाए बढ़ना तय है। खर्च की रफ्तार तेज होने से पहले से चिंतित राज्य अब पब्लिक स्कूलों में वंचित वर्गो के बच्चों के दाखिले के बोझ से हलकान हैं। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निजी पब्लिक स्कूलों में 25 फीसद सीटों पर वंचित वर्गो के बच्चों को दाखिला दिलाने से सूबे के सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ गया है। उत्तराखंड ने इस मद में तकरीबन 41 करोड़ की धनराशि केंद्र से मांगी है। अन्य राज्यों ने भी इस कानून के तहत आने वाले खर्च को वहन करने की मांग केंद्र से की है। केंद्रीय योजना आयोग ने राज्यों के तर्क पर गौर तो फरमाया, लेकिन सभी राज्यों से जुड़े होने के कारण यह मामला अब केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पाले में है। 1.60 लाख तक पहंुच जाएगी छात्रों की संख्या उत्तराखंड में मौजूदा निजी पब्लिक स्कूलों में 25 फीसद सीटों के मुताबिक तकरीबन 22 हजार सीट वंचित वर्ग के बच्चों के लिए हैं। बीते वर्ष तकरीबन 15 हजार बच्चों के दाखिले इसके तहत हुए। इस वर्ष यह प्रक्रिया अब भी जारी है। 30 सितंबर तक बच्चे दाखिला ले सकते हैं। 2011-12 और 2012-13 के लिए इस मद में राज्य ने 40.74 करोड़ खर्च का आकलन किया है। केंद्र से यह खर्चा वहन करने का प्रस्ताव भेजा गया है। आगामी वर्षो में आरटीई के तय मानकों के मुताबिक दाखिले हुए तो कक्षा एक से आठवीं तक के छात्रों की संख्या बढ़कर तकरीबन 1.60 लाख तक पहंुचना तय है।
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