उत्तर प्रदेश में दो लाख सालाना आय वाले परिवारों के बच्चे मुफ्त पोस्ट मैट्रिक शिक्षा पाएंगे। यानी इन छात्रों की दसवीं के बाद व्यावसायिक शिक्षा तक पूरी पढ़ाई का खर्च राज्य सरकार को उठाना होगा। चाहें पढ़ाई सरकारी कालेज में हो या निजी कालेजों में। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने फीस कटौती का आदेश निरस्त करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। हालांकि कोर्ट के अंतरिम आदेश के कारण राज्य में अभी भी यह नीति लागू है। न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी व न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने राज्य सरकार की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह एक अच्छी नीति है और इसे जारी रहना चाहिए। मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में गरीब बच्चों की पोस्ट मैट्रिक पढ़ाई का खर्च उठाने की नीति 2003 से लागू है पहले यह नीति सिर्फ अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए ही थी। लेकिन बाद में इसमें सामान्य वर्ग व पिछड़ा वर्ग के गरीब छात्र भी शामिल कर लिए गए। 2010 के पहले परिवार की आय सीमा एक लाख रुपये सालाना थी। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने 28 मार्च 2010 को जारी आदेश में परिवार की सालाना आय सीमा दो लाख कर दी है। मालूम हो कि 2008 में उत्तर प्रदेश सरकार ने पोस्ट मैट्रिक मुफ्त शिक्षा नीति में बदलाव किया। यह घोषणा की गई कि राज्य सरकार सिर्फ सरकारी कालेजों की फीस के बराबर ही निजी कालेजों की फीस देगी। उससे ज्यादा की फीस छात्र को स्वयं देनी होगी। एनजीओ मेधा ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने मेधा की याचिका स्वीकार करते हुए सरकार के फीस कटौती के आदेश को निरस्त कर दिया था। सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। राज्य सरकार की दलील थी कि भारी आर्थिक बोझ के चलते मूलरूप में योजना लागू करना संभव नहीं है इसलिए फीस कटौती का निर्णय लिया गया है। यह सरकार का नीतिगत फैसला है।
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